ग्रहों को बना ले अपना घर,
हाथ सेंक सूरज की तपस से
प्यास बुझा समुन्द्र के जल से...
गति में पछाड़ दे मन को
इच्छा को बाँट दे दान में,
चन्दन का लेप लगा लोभ पर
विजय श्री कहला क्रोध का....
दौड़ कर पकड़ ले सोंच को
बैर को खिला गुड,
तमस को भगा जीवन से
परोपकार को गहना पहना...
समय का है उदघोष
उड़ खड़ा हो जा अब...
मिटा दे अल्पविराम
जाति, धर्म के पृष्ट से,
नहला दे सबको
सदाचार में...........
बहुत ही सुन्दर एवं सकारात्मक रचना ।
ReplyDeleteBahut Sundar Vichaar ....Bhadiya Rachana.
ReplyDeletehttp://chitthacharcha.blogspot.com/
Khoob sundar upmayen dhoondh kar laye bhai.. lab me discover ki kya.. ;)
ReplyDeleteDipak ji lab main kahan time milta hai upmayen dhoondne ka.......
ReplyDeleteDear I mean sahitya ki lab me... samajhte nhin ho yaar
ReplyDeletehahaha bas sab aap ka asirwaad hai...
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