Monday, October 1, 2018

अधिकार की अधिकता

अधिकार की अधिकता !

महत्वहीन ज्ञान से उपजी तर्क की अधिकता,
सामाजिक सरोकार बिना सम्मान की अधिकता //
सोच-समझ कर ना कही बात की अधिकता,
सम्बन्धो में त्याग के बिना अधिकार की अधिकता //

ईश्वर की भक्ति में आडम्बर की अधिकता,
आवश्कता से अधिक दिखावे की अधिकता //
सहयोग से अधिक छलावे की अधिकता,
फल में कर्म के बिना अधिकार की अधिकता //

जीवन की राह में भागदौड़ की अधिकता,
पुत्री में भेदभाव कर पुत्र पाने की अधिकता //
धन्यवाद छोड़कर थैंक्स कहने की अधिकता,
समय में समझ के बिना अधिकार की अधिकता //
...............
डॉ तेज प्रताप सिंह 




Monday, September 29, 2014

मेरा क्या है
बचपन की चंचलता माँ के लिए,
विद्यार्थी जीवन गुरु को समर्पित|
वयस्क हूँ प्रेमिका के सृंगार कृत,
वृद्ध बनुंगा ईस्वर की भक्ति के लिए||
मेरा क्या है 
सीस माता-पिता,गुरु के सम्मान के लिए,
शारीर का कर्त्यव दूसरों की सेवा है|
पौरुष और वीरता करेंगे नारी धर्म,
नेत्र प्रकृति और सत्य दर्शन के लिए||
मेरा क्या है
छमा और करुणा शत्रु के लिए,
प्यार जीवन-संगिनी को समर्पित|
भविष्य को मिलेगीं हस्त रेखाएं, 
इच्छा मन की तृप्ति के लिए||
मेरा क्या है 
सदाचार और सन्स्कार पुत्र के लिए,
सहयोग हमेशा मित्र के साथ|
अतिथि को मिलेगा आदर और सत्कार,
ज्ञान और चिन्तन साहित्य को समर्पित
बचा प्राण जो यमराज के लिए||
मेरा क्या है 


डॉ तेज प्रताप सिंह

स्वामी दर्शन..........'तेज'

                       
                        छोड़ मेरा संग
                        प्रिये गये कहाँ,
                        विरह की अग्नि में
                        तन-मन भस्म यहाँ ।।

                       गृह स्वामी दर्शन में 
                       मृग नयन पथरायी,
                       हर्दय में शेष कंपन
                       मिलन मात्र बवरायी ।।

                      त्याग परदेश प्रेम
                      चरण धरो गृह चौखटा,
                      जो बना है बिना हरण
                      रावण अशोक वाटिका ।।

                                                      'तेज'
 

Monday, September 22, 2014

क्या करूँ

उनकी याद मिटाने को 
उन्हें अपने ख़्वाबों में भुला आया,  
फिर भी ना बनी बात तो 
बाजार से एक बोतल खरीद लाया,
पी तो लेता मैं पूरी बोतल यारों
पर आधी में ही 
मैं उन्हें चौपाटी पर मिल आया।  

डॉ तेज प्रताप सिंह 
२१/०९/२०१४ 
क्या करूँ 

Wednesday, August 15, 2012

हम स्वतंत्रता दिवस क्यों मानते हैं

हम स्वतंत्रता दिवस क्यों मानते हैं
जीवन मूल्यों में निर्वाह की कमी का या फिर आधुनिक विचारों की स्थापना का
गिरती नैतिकता की उलाहना का या फिर नक़ल करने की प्रतिस्प्रधा का
चरित्र की अवहेलना का या फिर चरित्र में भ्रस्टाचार उक्त गुडों की लगन का
सामाजिक भेद-भाव का या फिर अवस्कता से अधिक अधिकार का
गुलामी को न भुलाने का या फिर व्र्हत भारत के टूट जाने का
अखंड भारत और अखंड समाज की परिकल्पना ही
सच्ची आजादी है, जय हिंद 



Thursday, July 26, 2012

शौचालय दर्द


शौचालय हंस कर बोल पड़ा
मैं तो एक हूँ पर लोग क्यों अनेक हैं 
किसी का मोटा, किसी का पतला 
कोई गोरा तो कोई काला................
सब अपनी तशरीफ़ रखते हैं 
खुद तो पकवान खाते हैं 
मुझे सडा-गला बचा हुआ खिलाते हैं
राजनीती में,
पहले अन्ना जी की खुसबू मिलती थी 
तो आज अरविन्द ने सिटकनी लगायी है 
योग गुरु रामदेव तो कभी-कभी आते हैं 
जब कभी अन्ना उन्हें भीड़ जुटाने को बुलाते हैं 
उधर प्रणव दा मुझे छोड़ मेरे मित्र के यहाँ क्या गए 
तो संगमा जी नाहक ही मुझसे उदास हो गए 
मनमोहन जी तो आज कल रोज आते हैं 
पर स्वाद सोनिया जी का छोड़ जाते हैं 
पता नहीं सरद पवार जी को क्या हुआ है 
जो आज कल चौहनी खुसबू के याद दिलाते हैं 
मोदी जी का हाजमा अपनों ने इतना खराब किया  
की वो देश छोड़ मेरे जापानी मित्रो में मशगूल हैं
अखिलेश जी के खाने में तो कुछ और ही बात है 
क्योंकि उन्हें मुलायम और आजम हाथ से खिलते हैं 
ममता के तसरीफ का तो कोई भरोसा नहीं 
आ गयीं तो ठीक है नहीं तो कोई और सही 
राहुल गाँधी पहले चुपके-चुपके आते थे 
पर अब पूरी जिम्मेदरी लेने को हैं तैयार 
माया जी ने 6 महीने का अवकाश ले रखा है 
पार्कों को छोड़ घर में ही तसरीफ जमा रखा है 
राज ठाकरे मराठी मानुस की खुसबू भी नहीं देते 
गाहे बगाहे टोल टैक्स अलग से दे जाते हैं 
नीतिस ने भी अपना जलवा अलग दिखा रखा है 
भाजपा को छोड़ तसरीफ कांग्रेस में टिका रखा है 
मेरे क्या मैं तो अपने दर्द में जी रहा हूँ 
इस मंहगाई में........ 
जो कुछ बचा कुचा मिल रहा खा रहा हूँ 
और अपने किस्मत पे रो रहा हूँ 


डॉ तेज प्रताप सिंह 

Saturday, June 16, 2012

कुछ देर और ठहर जाओ

निन्द्र क्यों आ गयी प्रेम को, अभी तो रात्रि आधी है। 
जो कहनी थी बात हमको, वो बात अभी बाकी है।। 
आज तो घटाओं को जगा कर देखो,
चेहरे से केशुओं को हटा कर देखो,
कल का क्या भरोसा, कल की बात अधूरी है।
आज हैं हम जिन्दा, कल की साँस सौतली है।।
चाँद-सितारे लड़ रहें हैं सूरज से, 
कुछ देर और ठहर जाओ अभी,
कर लेने दो स्पर्श मधुरिमा की, कल वो मिट जायेगा वतन पर। 
फिर होगी शेष रात्रि तुम्हारी, और तुम्ही होगे सरताज धरा के।।


"जय हिंद जय भारत"


डॉ तेज प्रताप सिंह 
15/06/2012
  






Tuesday, April 24, 2012

कमीं है आज

कमीं है आज,
विश्वास की शक्ति में
त्याग.. 
सत्य की राह में
संघर्ष... 
सम्मान की चाहत में
परिश्रम... 
अधिकार के छेत्र में
प्रेम...
सम्बन्धो के प्रभाव में
मधुरता... 
और; ईश्वर की भक्ति में
समय..


Monday, April 16, 2012

यादें

यादें जो रहती हैं मन में मेरे 
उन्ही यादों में..
कुछ भूल-भूल कर आती हैं,
तो कुछ ने अपनी ख़ास जगह बना रक्खी है  
उन्ही यादों में...
कुछ जो दे जाती हैं मुस्कुराहट होंठो पर 
तो कुछ करती हैं सोचने पर मजबूर 
उन्ही यादों में..
कुछ ऐसी जो आती हैं अकेले में 
तो कुछ किसी को देखने के बाद 
उन्ही यादों में..
कुछ जो संगीत में डूबने के बाद आती   
तो कुछ बारिश में भीगने के बाद 
उन्ही यादों में..
कुछ जो बचपन में खोई हैं 
तो कुछ जिंदगी की जद्दो-जहत में 
उन्ही यादों में..
कुछ कोस रही हैं अपने आप को 
तो कुछ दे जाती हैं आंसू आँखों में 
उन्ही यादों में..
कुछ भूल सुधारने को तैयार 
तो कुछ को समय बीत जाने का डर
उन्ही यादों में..
कुछ भाग्य को दोष दे रही हैं 
तो कुछ धन्यवाद की मुद्रा में 
उन्ही यादों में..
कुछ ने जीता है तकदीर को 
तो कुछ का हौसला अभी भी है बुलंद
उन्ही यादों में..
कुछ खड़ी हैं हाथ पकड़ कर 
जिंदगी का....
सच है,
यादें ही हैं जिन्दगी के सच्चे साथी 

Tuesday, March 27, 2012

मेरी हस्ती मिटा दीजिये

जहाँ तक नज़र जाये गिरा दीजिये,
मेरी हस्ती को आज मिटा दीजिये,
फल्कों पर रखा है तुमको बिठाकर,
मेरे अंशुमन को अब सजा दीजिये।
अपनों को तो देखा होगा तुमने बहोत,
जरा इस गैर पर भी इनायत कीजये,
कहीं भरा प्याला छलक न जाये,
उससे पहले मैखाने को जगा दीजिये।
जहाँ तक नज़र जाये गिरा दीजिये,
मेरी हस्ती को आज मिटा दीजिये।।