छोड़ मेरा संग
प्रिये गये कहाँ,
विरह की अग्नि में
तन-मन भस्म यहाँ ।।
गृह स्वामी दर्शन में
मृग नयन पथरायी,
हर्दय में शेष कंपन
मिलन मात्र बवरायी ।।
त्याग परदेश प्रेम
चरण धरो गृह चौखटा,
जो बना है बिना हरण
रावण अशोक वाटिका ।।
'तेज'
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