Friday, August 20, 2010

सबसे छोटी जाति किशान

आप सभी लोगों से कभी न कभी ये जरूर पूछा गया होगा की आप क्या करते हैं या आप का बेटा क्या करता है. आज मोहन भी इस सवाल से बच नहीं पाया या यह कहिये की मोहन से जान बूझ कर ये सवाल पूछा गया. मोहन अपने एक मित्र रोहन की शादी में गया था. सभी अपने-अपने तरीके से शादी का आनन्द ले रहे थे तभी अचानक एक आवाज आयी...आरे भाई अन्दर आ जाईये वरमाला पड़ने वाली है. 
"यार मोहन चलो हम भी चलते हैं 
हाँ चलते हैं......"
यह कहकर मोहन अपने उस नए बने मित्र के साथ वरमाला मंच के ठीक सामने जाकर खड़ा हो गया.
दोनों ने वरमाला का रश्म निभाया फिर जाकर रोहन के घर वालों के साथ बातें करने लगे.
"रोहन बेटा इनसे मिलो ये हैं मिश्रा जी...जानते हो इनका बेटा डॉक्टर हो गया है.
ये तो बहुत अच्छी बात है..अब तो आप बहुत खुश होंगे..मोहन बोला 
हाँ भाई मेरे लड़के ने तो मेरा नाम रोशन कर दिया."
मोहन ने सहमती से सर हिलाया और फिर खाना लेने के लिए चला गया. थोड़ी देर बाद खाना लेकर जब वह लौटा तो वहां पर कुछ और लोग आकर खड़े हो गए थे.
नमस्ते अंकल..मोहन ने विनम्रता का परिचय दिया ????
हाँ नमस्ते बेटा कैसे हो.....!!!!
इतनी देर में रोहन भी वहां आ गया था...
भाई आप के बेटे ने तो वो काम किया है जो काबिले तारीफ है. आईएस बनना कोई मामूली बात तो नहीं हो सकती..
"बधाई हो बेटा......!!
हाँ इतना ही क्यों आप की बहू भी तो अब इंजीनियरिंग पूरा करेने वाली है.
सब आप लोगों की कृपा है...रोहन के पापा बोले"
मोहन भी सब की हाँ में हाँ मिला रहा था की तब तक किसी ने पूछ ही लिया 
"बेटा तुम क्या करते हो....??
थोडा चुप होते हुए बोला मैं तो..!!! कुछ नहीं घर पर ही खेती देखता हूँ.
अच्छा तो किसान हो"...कहीं से एक व्यंग्य भरी आवाज आयी.
"मोहन चुप रहा फिर बोला पता नहीं पर खेती करना मुझे अच्छा लगता है."
अब लोगों ने मोहन से थोडा बात करना कम कर दिया और धीरे-धीरे वहां से हटने लगे. 
उसको ऐसा लगने लगा जैसे अचानक वह अछूत हो गया हो. अब जादा देर मोहन से रुका न गया. मोहन तुरंत वहां से चल दिया पर वह इस बात को सोचता रहा की जब लोगों को यह पता था की मैं खेती करता हूँ तो फिर पूछा क्यों. 
जाति के आधार पर लोगों को बटते तो बहुत बार देखा था पर काम और नौकरी के आधार पर पहली बार ....वैसे भी हमारी जातियां काम के आधार पर ही बांटी गयी थीं पर आज आप इनका हाल तो देख ही रहे हैं. वह दिन दूर नहीं जब ये जातियां विलुप्त हो जाएगी और उनकी जगह नई जातियां आ जायेगी. तब आप को शायद मिश्रा जी, श्रीवास्तव जी, पंडित जी, ठाकुर जी कहकर न पुकारा जाये बल्कि डॉक्टर जी, इंजिनियर जी, मास्टर जी, पुलिश जी, वैज्ञानिक जी......कहकर पुकारा जाये और इनमें जो सबसे छोटी जाति होगी वो किशान होगी. 

तेज प्रताप सिंह `तेज`

Sunday, August 15, 2010

मैं तिरंगा हूँ,

मैं तिरंगा हूँ,
कोई मिटा नहीं सकता मेरी हस्ती,
बाजुओं में अदम्य ताकत पाई है 
लहराता रहूँगा यूँ ही खुले आसमान में,
निर्भय, अविरल, निस्वार्थ भाव से
और करता रहूँगा सेवा लोकतंत्र की।

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं


तेज प्रताप सिंह `तेज´


Friday, August 13, 2010

बटाई का धान

अन्दर से आवाज आई........

"अब तो खुश हो ना
हाँ काहे ना रही...तोका कोनो परेशानी है का
हाँ-हाँ अब तो खुश रहोगे ही..बटाई पर खेत जो मिल गाया है
भला हो राम सिंह का जिसने मुझे शहर में जाकर मजदूरी करने से बचाया"
स्वामी हर छमाही शहर जाता था और घर को चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करता था पर इस बार राम सिंह ने उसे कुछ खेत बटाई पर देकर यहीं गाँव में रूककर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया. पहले स्वामी थोडा सोंच में पड़ा पर अपनी धर्म पत्नी शोभा के समझाने से वह गाँव में रुक कर खेती करने के लिए तैयार हो गाया.
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 आज राम सिंह बहुत खुश था, होता क्यों नहीं लहलहाते धान के खेत उसकी ख़ुशी और मेहनत के गवाह थे.
"शोभा जानती हो!! धान बेचकर मैं क्या खरीदूंगा?
क्या, भला मैं भी तो जानू?
तेरे लिए गले का हार...मुझे तेरा खाली गला अच्छा नहीं लगता
रहने भी दो ये हार-वार, घर के छत से पानी टपक रहा है पहले वो बनवा लो....
हाँ वो भी बनवा दूंगा...
अच्छा-अच्छा ठीक है अब आकर खाना खा लो.."
स्वामी और शोभा दोनों आमने-सामने बैठकर एक ही थाली में खाने लगे. मन ही मन जैसे दोनों बातें कर रहे हों की फसल कटने के बाद पहले हम राम सिंह के पास जाकर उनका धन्यवाद देंगे की उनकी दया से ही अब हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं. राम सिंह जैसा आदमी अगर हर गाँव में हो जाये तो ना जाने कितने मजदूर शहर जाने से बच जाएँ.
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काली रात थी..आसमान में बादल अपने उफान पर थे.
"शोभा ये बादल तो लग रहा है आज कुछ गुल खिला के ही जायेंगे
अच्छा है ना फसल में पानी लग जाएगा
ठीक बोल रही है तू..अब दरवाजा बंद कर दो सोने चलते हैं"
दोनों ने चादर अपने चेहरे पर डाली और सोने लगे लेकिन टपकती छत ने उनकी नीद तोड़ दी ...
"शोभा ये बादल गये नहीं अभी तक
हाँ लग रहा है सही में कुछ गुल खिला कर जाएँगे
बंद कर अपनी ये मनहूस आवाज...शुभ-शुभ बोल!!!"
दोनों के आँखों से नींद जा चुकी थी पर बादल अभी तक नहीं गये थे. एक-एक घडी कर के सुबह कब हो गयी दोनों को पता ही नहीं चला. अगले दिन तो वो कुछ बोलने लायक बचे ही नहीं.

जो फसल उनकी आँखों के सामने कल तक लहलहा रही थी, आज वह पानी में तैर रही थी, मानों इशारे से कह रही हो की मैं तुम्हारी जिंदगी में ख़ुशी ना ला सकी इसका मुझे बहुत दुःख है.
स्वामी के नशीब में तो जैसे शहर में जाकर मजदूरी करना ही लिखा है, बेकार में उसने थोड़ी दिन सपने देखे.
स्वामी ही क्यों और भी हैं जिनके सपने पानी में तैर रहे हैं और ना जाने कब तक तैरते रहेंगे.
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Saturday, August 7, 2010

लोग सरस्वती को खरीद रहे हैं

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आज ही इंजीनियरिंग कॉलेज का रिजल्ट आया था....
"बेटा मनोज तुम्हारे रिजल्ट का क्या हुआ?
हाँ पापा लिस्ट में दूसरा नंबर है, अच्छा कॉलेज मिल जायेगा 
गुड, मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ.
वो तुम्हारे दोस्त सोनू का क्या हुआ ?
पापा उसको शायद कोई कॉलेज ना मिल पाए उसके नंबर बहुत कम हैं.
चलो कोई बात नहीं अगली बार शायद उसे भी कुछ अच्छा मिल जाये."
अगले दिन मनोज कॉलेज में दाखिला लेने पहुंचा तो उसे वहां सोनू के पापा भी मिल गये.
"हाँ बेटा मनोज कैसे हो...कैसा चल रहा है सब कुछ.
मैं अच्छा हूँ ...कॉलेज में दाखिला लेने आया हूँ  
बधाई हो..
पर आप यहाँ कैसे?
हाँ.. मैं भी सोनू का दाखिला कराने आया हूँ"
मनोज को तो बात समझ में नहीं आई कि आखिर सोनू को कैसे दाखिला मिल सकता है.
यही सोचता हुआ वह सोनू के पापा को नमस्ते करके अन्दर दाखिले के लिए चला गाया.
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दाखिला लेकर मनोज जब घर वापस आया तो बहुत परेशान था ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने आप को कोश रहा हो कि इतना पढने का क्या फ़ायदा जब सोनू को बिना मेहनत किये दाखिला मिल रहा है. इतने में उसके पापा आ गये, उसको परेशान देखकर पूँछ पड़े क्या हुआ सब कुछ ठीक तो है ना. मनोज ने दुखी मन से सारी बात बताई.
ये तो गलत है..पर ये सब हुआ कैसे? कोई बात नहीं तुम इसकी चिन्ता मत करो और आगे के बारे में सोचो.
मनोज सहमती से सिर हिलाकर बाहर चला गाया.
अगले दिन मनोज घर से थोडा जल्दी निकला यह पता करने के लिए कि ये सब हुआ कैसे.
कुछ दोस्तों से मिलने के बाद जो उसे पता चला उससे तो वह और भी परेशान हो गाया. 
मनोज के लिए ये कोई छोटी बात नहीं थी कि पैसे देकर कोई इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला कैसे ले सकता है. वह मन ही मन में सोंच रहा था कि मैंने इतनी पढाई कि इस कॉलेज में दाखिला मिल जाये, दिन रात एक कर दिया पर जब लोग यहाँ पैसे से दाखिला ले रहे हैं तो ये कॉलेज अच्छा कैसे हो सकता है. मनोज ने मन में ठान ली कि वह अब इस कॉलेज से अपना नाम हटा कर किसी और कॉलेज में जायेगा जो शायद देखने में अच्छा ना हो पर सरस्वती कि पूजा करता हो.
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सोनू के पापा आज बहुत गर्व से कह रहे हैं कि मेरा बेटा बी टेक कर रहा है और किसी के बेटे से कम नहीं है. लेकिन इस गर्व के पीछे एक कडवा सच ये है कि अगर सोनू को अपने बल पर बी टेक करना होता तो आज भी वो घर में बैठा होता. पैसे में इतनी ताकत कहाँ से आ गयी जो आज लोग सरस्वती को खरीद रहे हैं और देश में बने ना जाने कितने कॉलेज इन्हें बेच रहे हैं.
भ्रस्टाचार के लिए हम सरकार को कोसते हैं पर कभी अपने दामन को नहीं देखते. मुझे तो लग रहा है देश तो आगे बढ रहा है पर देश के लोग नहीं. 

                             खून वो नहीं जो सिर्फ अपने बाजुओं में बहे
                          कभी धरती पर भी एक कतरा गिरा कर देखो।।

तेज प्रताप सिंह `तेज`

Thursday, August 5, 2010

मेहनताना

रानी के बाबू जी दो महीना पहले ही सेना कि सेवा पूरी कर के आये थे. हर समय उन्हें रानी की शादी और अधूरा बना घर चिंता में डुबा देती थी. सवाल ये उठता है कि क्या सेना में इतना भी मेहनताना नहीं मिलता कि वो अपना घर बनाकर बेटी कि शादी कर सकें? जो देश के लिए अपना सर लिए घुमते हैं उनके पास ही सर छूपाने के लिए जगह नहीं होती...सवाल बहुत छोड़ा है पर जवाब शायद किसी कि पास नहीं है.
चिंता के इन्हीं कारणों ने सूबेदार राम सिंह को जल्दी पैसा बनाने के लिए मजबूर किया और वो बिना सोचे समझे जिले में एक ६ महीने पहले खुली ट्रेडिंग कंपनी में पैसा लगा दिया. कंपनी शेर बाजार में पैसा लगा कर पैसा बनाती थी. राम सिंह ने अपनी जिंदगी कि बची-कुची पूँजी कंपनी में लगा कर इस बात का इंतज़ार करने लगे कि १ साल बाद उन्हें इसका दुगना मिल जायेगा और वो अपने सारे काम आसानी से पूरा कर सकेंगे.
राम सिंह ने रानी कि शादी खोजना भी शुरु कर दिया......
बाबू जी मैं शादी नहीं करुँगी..मुझे आप के साथ ही रहना है 
बेटी शादी तो करनी ही है, मुझे पता है कि तू मुझसे बहुत प्यार करती है पर मैं भी तो तुझसे उतना ही करता हूँ .
चलो बताओ इनमें से कोन सी फोटो तुम को सब से जादा पसंद है.
आप देख लो बाबू जी मुझे तो सब एक जैसे ही लगते हैं........!!!
हाँ अब तेरी पसंद भी तो देखनी पड़ेगी ना कि तुझे कौन पसंद है...अब अगर तेरी माँ आज हम लोगों के बीच होतीं तो ये फैसला भी उनके ऊपर छोड़ देते.. 
इतने में फ़ोन की घंटी बजी.....
हेलो...आप राम सिंह बोल रहे हैं 
हाँ कहिये .....
वो शादी के बारें में बात करनी थी, कल हम लोग लड़की से मिलने आ रहे हैं अगर आप को कोई एतराज ना हो तो.
अरे इसमें एतराज करने वाली कोन सी बात है....आप लोग कल आ सकते हैं 
रानी देखो कल तुमको एक लड़के वाले देखने आ रहे हैं तुम को कोई एतराज तो नहीं है.
नहीं बाबू जी ठीक है.............
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सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी, लोग आ चुके थे रानी को देखने. लड़के वालों ने सबसे पहले लड़की से मिलने की इच्छा जताई, रानी का जैसे कमरे में प्रवेश हुआ सबकी आँखे उसके चेहरे की और दौड़ पड़ीं. रानी सचमुच रूप की रानी थी कोई भी अपनी नजर ना हटा सका उसके चेहरे से, ऐसा लगा जैसे रानी किसी बच्चे की मासूमियत छुपाये शर्म के पालने में झूल रही हो.
रानी एक ही नजर में सबको पसंद आ गयी.....
अगले ही पल लड़के के माँ ने पूछा मेरा बेटा कैसा लगा?
रानी ने हाँ कर दिया.........अब क्या था जैसे ही रानी ने हाँ कहा शादी के बात पक्की होने लगी.
राम सिंह ने भगवान को धन्यवाद दिया और दिवार पर लगी रानी के माँ की तस्वीर देखने लगे.
थोड़ी देर बाद लड़के वाले अपने घर आने का नेवता देकर वापस चले गये.
रात के ९ बजे थे की राम सिंह का फ़ोन एक बार फिर बजा....
हेलो..मैं राहुल बोल रहा हूँ 
कौन राहुल????
वही जिसने आप का पैसा ट्रेडिंग कंपनी में लगवाया था.
हाँ...क्या हुआ ?
एक बुरी खबर है ......कंपनी भाग गयी 
क्या....होश में तो हो की तुम क्या कह रहे हो.
हाँ मैं सच बोले रहा हूँ........
राम सिंह के पैर के नीचे से जमीन खिसकी और वह धडाम से गिर पड़ा 
रानी को कुछ समझ में नहीं आया की अचानक क्या हो गया...दौड़ कर अन्दर से पानी लायी और राम सिंह को पिलाने लगी.
राम सिंह थोडा समहला और एक लम्बी गहरी साँस लेकर रानी को सब कुछ बता दिया. रानी भी पहले थोडा दुखी हुई पर अगले ही पल हंसकर बोली कोई बात नहीं बाबू जी हम फिर कमा लेंगे. इससे जादा रानी क्या बोलती उसे भी पता था की अब बहुत सारी परेशानिया एक साथ आने वाली थीं जिसमें उसकी शादी भी थी.
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इस भीड़ में सिर्फ राम सिंह ही नहीं था और भी बहुत से लोग थे जिनके सपने टूटे थे. राम सिंह अब अपनी किश्मत कोसता हा फिर सरकार जिसको हम चुनकर भेजते हैं. अब राम सिंह भी क्या करता काफी बड़े लोगों का नाम जुड़े होने के कारण जिसमें जिले के बड़े नेता और पोलिश महकमे के लोग भी थे, उसके कंपनी पर जल्दी विश्वास करने का कारण बनी थी.
राम सिंह मन ही मन सोंच रहा था कि इस देश की सरकार कब सुधरेगी और कब ऐसे लोगों पर लगाम कसेगी जो अपनी मनमानी करते फिर रहे हैं. 
राम सिंह देश के बाहर के दुश्मनों से तो जंग जीत गाया था पर देश के अन्दर हार गाया.

तेज प्रताप सिंह `तेज` 

Tuesday, August 3, 2010

मंजिल

हर एक पल को जियो जी भर के
सपनों पर अपनी लगाम नहीं होती,
आने वाले कल को देख लो आज
पीछे देखना विजेता की पहचान नहीं होती।

गर्व से सर उठा कर चलो
हीरे की कोई पहचान नहीं होती,
जीत जाओगे जीवन के इस शफर में
बिना उड़े परिंदे की पहचान नहीं होती।

मुश्किलों से तुम घबराना नहीं
किस्मत किसी की गुलाम नहीं होती,
जब तक गिरकर उठ ना जाओ
मंजिल की सही पहचान नहीं होती।

Sunday, August 1, 2010

मेरी बात

बहुत दिनों से मैं आप लोगों से दूर रहा इसका मुझे खेद है.
बताते चलें की आज से मैंने एक नया ब्लॉग शुरु किया है जिसपर सिर्फ मेरी कुछ अनमोल कहानियां होंगी.
कृपया जरूर आयें इसपर
आप का प्यार मिलता रहे बस और क्या.........
 http://tejpsinghji.blogspot.com/

तेज

आया हूँ आज तो कुछ लिख के जाऊंगा

आया हूँ आज तो कुछ लिख के जाऊंगा 
यादों को शब्दों में पिरो के जाऊंगा
भूल ना जाऊं उनके चेहरे की तासीर 
इसलिए महफ़िल को आज जगा के जाऊंगा ।

बजा दो तालियाँ मेरे इन शब्दों पर 
पी लो मुहब्बत के दो चार घूँट
आया हूँ आज मैं बहुत दिन बाद
तो प्रेम में डुबकी लगवा के जाऊंगा ।

टूटे दिल में आश जगाने की खाई है कशम
उजड़े प्यार को बसाने की ठानी है मैंने 
उदास चेहरे पर आ जाये फिर से मुस्कुराहट  
इसलिए दिल में एक और गुदगुदी उठा के जाऊंगा ।

महबूब की दोनों आँखों में डूब जाओ
भुला दो दूनिया की ग़मों रंजिश 
भीग जाये तेरा तन मन उनके प्रेम में 
इसलिए आज मुहब्बत की बारिश करा के जाऊंगा ।

तेज