आम आदमी की आस
बड़े वादों का झूठा विस्वास
भावनाओ का ब्रत उपवास
लूट लो दोनों हाथों से लूट लो नेता तुम लूट लो............
चुनाव आते हैं बार-बार नयी आस और उम्मीद के साथ
कर दिए जाते हैं फिर वही वादे
जिनपर इरादे थे सफ़ेद और सादे
क्यों करते हो वादे
जो करना है कर लो
नेता तुम लूट लो............
सम्माननीय भारतीय सविंधान लोकतंत्र और उसकी लाज की
बारी-बारी से संसद में लगाओ बोली
आज ही मोल कर खरीद लो
नेता तुम लूट लो............
कहना क्या..वो तो लूटने में लगे ही हैं.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteअरे भाई अब कुछ रहने भी दीजिये...काहे को और उसका रहे हैं....लूटिये तो रहे हैं सब...
ReplyDeleteहाँ नहीं तो...!