सजा तो नहीं है
जलाकर कपूर कहते हो
राख तो नहीं है
जाऊं भी तुम्हे छोड़ कर तो कहाँ जाऊं
मंदिर, मस्जिद और भगवान भी तुम्ही निकले
अधर चुम्बन देकर कहते हो
बेशर्मी तो नहीं है
तीर धनुष से छोड़ कर कहते हो
मृग तो नहीं है
घायल होने से रोकें तो कैसे रोकें दिल को
आखेट, आखेटक और सारथी भी तुम्ही निकले
हाथ दिल पर रखकर कहते हो
धड़कन तो नहीं है
भाव इश्क का लगा कर कहते हो
सस्ता तो नहीं है
बिकने से रोकें दिल को तो कैसे रोंकें
दूकान, मालिक और खरीदार भी तुम्ही निकले
मंदिर, मस्जिद और भगवान भी तुम्ही निकले
ReplyDeleteक्या अन्दाज़ है लिखने का । बहुत खूब ।
जाऊं भी तुम्हे छोड़ कर तो कहाँ जाऊं
ReplyDeleteमंदिर, मस्जिद और भगवान भी तुम्ही निकले
-वाह!! बहुत बेहतरीन!
अच्छी रचना । सुन्दर !!!
ReplyDeletesabhi ko dhanyawaad
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