कहीं उसके सपने
जो टूटे थे पत्थरों के साथ
बिना आवाज किये धूल बनके उड़ गए
एक-एक करके सारे सपने
अब बदली सी छायी है
आँखों में उसके, इन
बनते मकान में....दीवारों में चुनते जा रहे हैं
कुछ भारी कुछ हलके पत्थरों के साथ
रो रही है अपनी किस्मत पर
बटोर के खुदी दे रही है उन पत्थरों को
जो सबूत हैं उसके टूटे सपनों के
अभी भी है उम्मीद उसे
छूट जाये कोई पत्थर
बच जाये कोई दीवारों में चुनने से
जिसमें लगा है उसके ही सपनों का गारा, इन
बनते मकान में....
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