दौड़ रहा है अनचाहे सपनों के सड़क पर
कभी दायें तो कभी बायें मुड़ता
फिर भी नहीं पहुँचता मंजिल पर
सबको पीछे छोड़ने कि ठसक
सबसे आगे दिखने कि जिद
में क्यों है तैयार बिकने को खो गाया है तू कहीं इन्सान
क्या हो गया है तुझे!! ....
खोज रहा है गेहूं भूसे में
पानी में चला रहा है तलवार
थोडा तो बदल गाया इन्सान
वो दिन ना आये जब तू थक जाये रिश्ते भी दामन छोड़ दें....
अकेला पड़ जाये और रास्ते भी बंद हों
मन को थाम ले अभी भी है समय
धीरे-धीरे चल
जिंदगी को जी.....
बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDeleteबढ़िया रचना है!
ReplyDeleteसुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
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