आज आप को मैं कुछ उन पक्तियों से परिचय कराता हूँ जब सरदार भगत सिंह जेल में अपनी मंगेतर के याद में गाया करते थे.
आजीवन तेरे फिराक जुदाई विछोट्र,
विरह, नामिलन के कारण
दिल का शीशा इतना कमजोर हो गया कि
किसी फूल पत्ती या पराग कि चोट से टूट ना जाये,
इसलिए ये फूल पत्ती और पराग धीरे-धीरे धीमे-धीमे चढ़ा.
इन पक्तिओं को पढने के बाद मैं लिखे बिना रुक ना पाया
आजीवन जिसने सहा फिराक जुदाई विछोट्र,
विरह और नामिलन......
फिर भी किया नहीं उफ भी एक पल
सतत लड़ा आजादी का सपूत
रक्त का हर एक बूँद बहाकर
युवाओं से है मेरी पुकार
बना लो ऐसी एक मजबूत कतार
तोड़ ना सके जिसे कोई.....
धर्मं, भ्रस्टाचार और आतंकवाद
अब ना करो और जादा देर
कहीं हो ना जाये शीशे जितना कमजोर
मेरा यह देश.....
जिसपर हम चढ़ा ना सकें फूल, पत्ती और पराग
टी पी सिंह
(चित्र साभार गूगल)
रचना बहुत प्रेरक है!
ReplyDelete