Monday, August 15, 2011

मैं हूँ भारत माँ
तिरंगा लहराने आई हूँ |
सोये पड़े जंगी हथियारों में
फिर से धार लगाने आई हूँ ||
कहाँ गए वो वतन के प्यारे 
मर मिटते थे जो एक हुंकार पर,
खा लेते थे गोली सीने पर
आकर जंगे मैदान पर....
उन्हीं वतन के प्यारों को 
फिर जगाने आई हूँ...
और जो भूल गए हैं 
कीमत पावन आजादी की....
उनको उखाड़ फ़ेंक,
फिर नया देश बसाने आई हूँ ||
मैं हूँ भारत माँ,
तिरंगा लहराने आई हूँ |
सोये पड़े जंगी हथियारों में,
फिर से धार लगाने आई हूँ ||

"तेज"

Tuesday, August 2, 2011

हमने देखी ना थी चंचलता उनकी इस अदा में,
जिसका ढाल बना वो मेरा दिल ले गए,
पहले तो हम कभी-कभी मरा करते थे,
आज तो वो मेरी हर सांस को ही कत्ल कर गए |   

आकर अपने बाजुओं में मुझे सुलाया करते थे,
जाते-जाते माथे पर हाथ भी फिरा दिया करते थे,
पर जबसे उन्होंने चुराया मेरा दिल इन अदायों से,
आना तो दूर गाहे बगाहे मेरा हाल भी पूछना भूल गए | 




"तेज"

Monday, August 1, 2011

सावन

सावन की इन बरसती बूंदों में,
संध्या स्पर्श में कुंठित सरस को तरसे,
सूरज तरसे लालिख लालिमा को,
भोर अपनी रात की ओस को तरसे,
दिन तरसे बादलों की अटखेलियाँ,
और, इन मिश्रित उमंगो की बहारों में,
मेरा पुष्पित मन तरसे पिया मिलन को| 

Tuesday, April 12, 2011

लूटा है तुमने

आज हर कोई भ्रष्टाचार की बात कर रहा है, नयी क्रांति लाना चाहता है ऐसे में मुझे कुछ पक्तिंयाँ याद आ रही हैं .

लूटा है तुमने मुझे सर से लेकर पाँव तक

लाज न आई तुमको माँ को लूटते हुए,
जिसने तुम्हे अपनी गोद में सुलाया है
कम से कम उसके दूध का......
हक़ तो अदा कर दिया होता,
जिस माँ ने कभी तुम्हे रोते हुए पिलाया है

गैरों ने तो सिर्फ मेरा जेवर लूटा था
अपनों ने तो मेरी इज्जत पर हाथ  डाला है
मेरी न सही उस बच्चे का......
ख्याल तो कर लिया होता,
जसने अभी-अभी मेरी चिता पर फूल डाला है

मौत तो मेरी आई है
पर जिन्दा तुम भी न रह पाओगे
जाग गयी है जनता सारी,
अब तुम सब इसकी सजा  पाओगे



 
´तेज`



Saturday, March 5, 2011

PhD हमें किस मोड़ पर ले आई

PhD हमें किस मोड़ पर ले आई 
दिल करे हाय कोई तो बताये आगे क्या होगा भाई,

याद नहीं ठीक से कब खाना खाया था मैंने 
पता नहीं सोया कब था रात में पूरी नींद 
रात और दिन में अब कोई फर्क नहीं शायीं
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई। 

हर समय लैब के एक कोने में बैठा रहता हूँ 
कभी blot तो कभी pubmed में खोया रहता हूँ 
कितने ही blot लगा डाले पर वो band नजर नहीं आई
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई 

जब देखो तब पड़ता रहता हूँ research पेपर खोज के
ढूड़ता रहता हूँ की कभी कहीं कुछ नया idea मिल जाये 
नया तो मिला नहीं पर किसी ने मेरे idea की वाट लगाई
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई।

पूरा तन-मन लगा कर यह सोच कर काम करता हूँ 
की इस बार बॉस को दिखाने लायक अच्छा data आ जाये
पर जब analysis लिया तो P-value significant नहीं आई 
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई

कोई कहता उसका experiment अच्छा कोई कहता उसका 
मुझे तो सारे ही experiment एक जैसे ही लगते हैं
काम कर गया तो वाह-वाह  नहीं तो दुहाई
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई

जिंदगी हर दिन हर एक पल तनहा गुजर रही है अब तो यार
पहले तो कभी-कभी पिक्चर या बाहर घूम कर आते थे
पर अब तो सपनों में भी gfriend की जगह thesis नजर आई
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई

अपने से दास साल कम उम्र वाले भी अब तो settle हो गए
लोगों ने भी कहना शुरु कर दिया पढाई कब ख़तम होगी
मैं क्या बोलूं उनको क्यों मैंने research में जान फसाई
PhD हमें किस मोड़ पर ले आई

PhD हमें किस मोड़ पर ले आई 
दिल करे हाय कोई तो बताये आगे क्या होगा भाई,

conti....
Dr. Tej Pratap Singh

Sunday, January 9, 2011

मुन्नी का झंडू बाम....

अंतररास्ट्रीय मिडिया में आयी ये रिपोर्ट की अगर भारत में आज लोक सभा के चुनाव हो जाएँ तो कांग्रेस पार्टी को हार का मुहं देखना पड़ेगा. इतना ही नहीं शायद कांग्रेस के बड़े नेता भी चुनाव हार सकते हैं. ये इसलिए क्योंकि देश की जनता भ्रस्टाचार और महंगाई से तंग आ चुकी है. कांग्रेस पार्टी और मनमोहन सिंह का ये वादा की अगर हम दुबारा सत्ता में आये तो १०० दिन के अन्दर देश बदल देंगे, अब तक देश तो बदल ना पाया पर वादा जरूर बदल गाया. पहले कलमाड़ी जी ने खेल करा कर लूटा फिर राजा ने २ जी का खेल कर डाला, अभी ये खेल खत्म नहीं हुए थे की सिटी बैंक भी इसी कतार में आ गाया. और अब आगे-आगे देखिये होता है क्या....
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिये, कांग्रेस पार्टी बदनाम हुई भ्रस्टाचार में आके<<<<<दोनों बदनाम हुये झंडू बाम लगा के..... 


भ्रस्टाचार का ही नमूना है की छोटे शहरों की हालत गंदे नालों की तरह हो गयी है की कोई भी मूत के चला जाता है. जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज में अगर आप चले जाएँ तो शयद ही आप को वहां भीड़ के अतरिक्त और कुछ दिख जाये, डॉक्टर तो आते नहीं जो आते हैं वो मरीज को अपने क्लिनिक पर रिफर करके चले जाते हैं. ऐसा लग रहा है हर कोई लूटने में पड़ा है किसी को भी देश की नहीं पड़ी है. अब भाई जब सरकार ही भ्रस्टाचार में लिप्त होगी तो आम आदमी क्या करेगा उसको भी जहाँ मिलेगा नोंचेगा.

लोग भी क्या करें भ्रस्टाचार का एक घाव भरता नहीं की दूसरा हो जाता है, फिर तीसरा.....चौथा.....इतने घाव एक साथ तो कोई नहीं सह पायेगा...इलाज तो करेगा ही ना. अब यही वो समय है जब देश की जनता को इसका इलाज करना है.
और कुछ इसी तरह का इलाज उत्तर प्रदेश भी मांग रहा है जहाँ हर कोई एक दूसरे की लेने पर तुला हुआ है, कितने करोंड में कौन सी सीट बिकनी है किसे किस छेत्र का वोट काटना है, जातीय समीकरण क्या हैं और कहाँ से से कितना लूटा जा सकता है, इसी में सरकार का सारा ध्यान है. बिहार ने तो अपने दर्द का इलाज कर लिया अब उत्तर प्रदेश की बारी है. अब अगर इस प्रदेश के लोगों से इतना भी नहीं हो सकता तो फिर एक एक ही विकल्प है, मुन्नी का झंडू बाम....

Sunday, January 2, 2011

जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना

जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना
 
घी से भरे दीपक को जला के रखना 
अपने हाथों के सहारे रोके रखना लौ को,
कितनी भी अंधी आये मुझे बुझने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,

प्यार के हर एक बाण को बचा के रखना
धनुस पर लगा कर रखना तरकश को,
कितनी भी मुश्किल आये मुझे टूटने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,

आँखों की पलकों पर मुझे बिठा कर रखना 
उतरने ना देना कभी मेरे इन आसुओं को,
कितनी भी धुंध छाये मुझे रोने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना, 

जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना

Saturday, January 1, 2011

आओ खुशियाँ हम मिलकर सजायें

आओ खुशियाँ हम मिलकर सजायें,
दिन जो रूठ गये हैं उन्हें फिर से मनायें,

कहीं किसी उपरी मंजिल से
देखता होगा सूरज...
पिछले साल पुती दीवारों पर 
सूखता होगा मोरंग...
आओ उन्हीं दीवारों पर 
एक और नया रंग लगायें....
रिश्ते जो टूट गये हैं 
उन्हें एक बार फिर से मनायें,

हर आदमीं जैसे कहीं किसी 
धुन में चला जा रहा है...
जीवन के गुड को बिना खाये 
ख़ामोश जीये जा रहा है...
आओ दिनों दिन की बढती 
ख़ामोशी को फिर से मिटायें...
सपने जो पीछे छूट गये हैं 
उन्हें एक बार फिर से सजायें,

आओ खुशियाँ हम मिलकर सजायें,
दिन जो रूठ गये हैं उन्हें फिर से मनायें,

नव वर्ष मंगल मय हो 
`तेज`

Tuesday, December 7, 2010

मेडिकल प्रवेश परीछा

आदमी अपने जीवन में ऐसे बहुत सारे आयामों से गुजरता है जहाँ वह अपने आप को अकेला पता है. कुछ इसी तरह आज प्रताप महशूश कर रहा है. ५ साल पहले जब उसने मेडिकल की तैयारी शुरु की थी तब उसे नहीं पता था की वह कभी ये दिन भी देखेगा पर प्रताप को देखना पड़ा, कारण उसे भी पता नहीं था.

लगातार प्रयास के बाद भी प्रताप का चयन एम. बी. बी. स मेडिकल प्रवेश परीछा में नहीं हुआ यह उसका ५ वां साल था. प्रताप ने जब मेडिकल प्रवेश की लिए तयारी शुरु की थी तब उसके हाथ में १० + २ डिग्री थी और आज भी वही डिग्री. ऐसा नहीं था की प्रताप पढने में होशियार नहीं था पर किस्मत में जो लिखा था वही हुआ. लगातार 4 वर्षों तक उसका चयन बी. च. एम्. एस और बी. वी. स. सी  में हुआ पर जनरल कोटे में सीट कम होने से उसे एम. बी. बी. स नहीं मिल पा रहा था, कुछ, २-३ नंबर कम रह जा रहे थे. प्रताप ने एम. बी. बी. स करने के धुन में किसी में भी दाखिला नहीं लिया. यह उसका ५ साल था और उसने अपनी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

आज ही मेडिकल का रिजल्ट आने वाला था, प्रताप को उसका बेताबी से इंतज़ार था पर जब उसने सुबह अखबार देखा तो उसके होश उड़ गये. मेडिकल का रिजल्ट रोक दिया गाया था कारण पेपर लीक होने का मामला था. प्रताप को तो ऐसा लग रहा था जैसे की अभी वह धडाम से जमीन पर गिर पड़ेगा. वैसे पेपर लीक होना कोई नई बात नहीं थी पर इस बार पूराने सारे रिकॉर्ड टूट गये थे, ५०-५० हज़ार में कोचिंग वालों ने पेपर बेचे थे कुछ टेस्ट सिरीज के नाम पर तो कुछ गेस पेपर के नाम पर. अब कोई कितना भी मेहनत कर ले क्या फर्क पड़ता है चयन तो उन्ही का होगा जिनके पास ५० हजार हैं. 

प्रताप बहुत टूट गाया था और उसमें कुछ भी सुनने और समझने की ताकत नहीं बची थी. मायूस होकर जब वह घर पहुंचा तो घर वाले उसे ही गली दे रहे थे की ५ साल से तयारी कर रहे थे तुम होना होता तो हो गाया होता अब आगे क्या करने का विचार है. सभी घर वालों ने उससे मुहं मोड़ लिया की कहीं ऐसा ना हो की प्रताप को फिर से एक साल के लिए पैसे देने पड़े. अब प्रताप इस मोड़ पर है की उसके पास सिर्फ १०+२ की डिग्री है जिसके बल पर उसे कहीं नौकरी नहीं मिल सकती.

यह कहानी कितने और लोगों की होगी कहना मुस्किल होगा पर इतना तो साफ़ है की आजाद भारत को एक बार फिर से आजाद होना होगा इन माफियाओं, सरगनों और दबंगों से...........

तेज प्रताप सिंह "तेज"

Saturday, November 27, 2010

मेरे अब तक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन ....

नवम्बर १९, २०१० मेरे अब तक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन रहा. इस दिन मुझे मेडिकल यूनिवेर्सिटी ऑफ़ ग्राज़, ऑस्ट्रिया, यूरोपे द्वारा पी.एच.डी. की डिग्री प्रदान की गयी. यह डिग्री मुझे मोलीकुलर मेडिसिन में मेरे द्वरा सोरियासिस और इम्यून सिस्टम में किये गये कार्य के लिए दिया गाया है. दूसरी जो खुशी की बात है वो ये की इसी कार्य की लिए मुझे २०१० का सनोफी अवेंतिस पुरस्कार भी दिया गाया जो की प्रति वर्ष मेडिकल यूनिवेर्सिटी ऑफ़ ग्राज़ में चिकित्सा विज्ञान में शोध के लिए किये गये महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया जाता है. यह पुरस्कार मैंने दो अन्य लोगों के साथ साझा किया. मेडिकल यूनिवेर्सिटी ऑफ़ ग्राज़ में कार्य करते हुए मैंने प्रथम लेखक के रूप में दो अंतराष्ट्रिये शोध पत्र, The Journal of Immunology और The American Journal of Pathology (in press) में प्रकाशित किये और कई अंतराष्ट्रिये कोन्फेरेंस में भाग लिया.
आज मैं अपने आप को बहुत गौरवानित महसूस कर रहा हूँ की गोंडा, यू.पी. से मैं यहाँ तक पहुंचा और उन लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन लोगों ने मुझे यहाँ तक पहुँचने में सहयोग दिया. आखिर में मैं इसका पूरा श्रेय अपने परिवार और गुरु जनों को देना चाहूँगा जिनका सहयोग अमूल्य रहा.
अधिक जानकारी के लिए नीचे लिंक्स दे रहा हूँ.
नीचे कुछ तस्वीरें भी डाल रहा हूँ...................धन्यवाद  

तेज प्रताप सिंह 

 पी.एच.डी. दीक्षांत समारोह 

सनोफी अवेंतिस पुरस्कार