जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना
घी से भरे दीपक को जला के रखना
अपने हाथों के सहारे रोके रखना लौ को,
कितनी भी अंधी आये मुझे बुझने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
प्यार के हर एक बाण को बचा के रखना
धनुस पर लगा कर रखना तरकश को,
कितनी भी मुश्किल आये मुझे टूटने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
आँखों की पलकों पर मुझे बिठा कर रखना
उतरने ना देना कभी मेरे इन आसुओं को,
कितनी भी धुंध छाये मुझे रोने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना
आँखों की पलकों पर मुझे बिठा कर रखना
ReplyDeleteउतरने ना देना कभी मेरे इन आसुओं को,
कितनी भी धुंध छाये मुझे रोने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
वाह बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।
आँखों की पलकों पर मुझे बिठा कर रखना
ReplyDeleteउतरने ना देना कभी मेरे इन आसुओं को,
कितनी भी धुंध छाये मुझे रोने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
Behad pyare alfaaz!
वाह बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।
ReplyDelete