सावन की इन बरसती बूंदों में,
संध्या स्पर्श में कुंठित सरस को तरसे,
सूरज तरसे लालिख लालिमा को,
भोर अपनी रात की ओस को तरसे,
दिन तरसे बादलों की अटखेलियाँ,
और, इन मिश्रित उमंगो की बहारों में,
सूरज तरसे लालिख लालिमा को,
भोर अपनी रात की ओस को तरसे,
दिन तरसे बादलों की अटखेलियाँ,
और, इन मिश्रित उमंगो की बहारों में,
मेरा पुष्पित मन तरसे पिया मिलन को|
Nihayat sundar rachana!
ReplyDeleterimjhim barish ki boonden teri yaado ki treh...mann ko bhigo rahi hain...
ReplyDeletebahut khoob...aabhar...