दिन प्रतिदिन की भीड़ में
कहीं किसी सड़क पर
चिलचिलाती धूप में नगें पैर
दौड़ती इधर-उधर.....
कभी हिस्से में मिलती नई
तो कभी डामर से लतफत सड़क
देखती एक टक चलते लोगों को
तलाशती कोई अपना इन बदलते
लगों में चलती सड़क पर
दुःख ने छोड़ा ना उसका साथ
बचपन में मिला क्यों अभिशाप
मिलता दिन-प्रतिदिन अवसाद
आज फिर से.....
आँखों में रात की गहराती नींद
सोई नहीं अवसाद के डर से
निहार रही वह.....
आते जाते लोगों की भीड़
निकले इधर से आज कोई अपना
नहीं तो देके जाये
दो पैसा भीख
samvedna ki kitaab khol di chand shabdon ki kavita se Tej..
ReplyDeletebahute badhiya rahin..
bahut khoob sir bada hi samvedansheel chitran wo bhi sadak ka....
ReplyDeleteआँखों में रात की गहराती नींद
ReplyDeleteसोई नहीं अवसाद के डर से
निहार रही वह.....
आते जाते लोगों की भीड़
निकले इधर से आज कोई अपना
नहीं तो देके जाये
दो पैसा भीख
..samvedana se upji ek darbhari sachai.... Kash inka dard sabhi samaj paate!...
Bahut shubhkamnayne
निहार रही वह.....
ReplyDeleteआते जाते लोगों की भीड़
निकले इधर से आज कोई अपना
नहीं तो देके जाये
दो पैसा भीख
kamal kiya hai...
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
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