एक दिन शौचालय भी हंस कर बोल पड़ा
मैं तो एक हूँ पर लोग क्यों अनेक हैं
किसी का मोटा, किसी का पतला
कोई गोरा तो कोई काला................
सब अपनी तशरीफ़ रखते हैं
खुद तो पकवान खाते हैं
मुझे सडा-गला बचा हुआ खिलाते हैं
हर दिन कुछ नया मिलता है
कभी सानिया-मलिक के निकाह
के खाने की खुसबू मिलती .......
तो कभी आयशा सिद्दीक़ी के
तलाक के बाद का लिया गया निवाला
राजनीतिक खुसबू की तो बात ही निराली
संसद के अन्दर-बाहर जितनी भी रोटियां पकती
देर-सबेर हमें उसकी खुसबू मिल ही जाती
राहुल और माया के तशरीफ़ का स्वाद भी मिलता
पर दलित तडके के कारण एक जैसा ही लगता
फ़िल्मी सितारों की महक आज-कल थोडा सड़ी है
क्योंकि आईपीएल से बॉक्स ऑफिस की हवा उडी है
बाबा राम देव ने लगता है कुछ खाया नहीं
योग शक्ति के डर से कुछ भी बाहर आया नहीं
शशि थरूर ना अपना हाजमा खुद खराब किया
शशि थरूर ना अपना हाजमा खुद खराब किया
जो बिना हाजमोले के मोदी से दो-दो हाथ किया
अमर तो लखनऊ में मेरा दरवाजा ही खोलना भूल गए
दिल्ली में रहते हैं हमेशा जमें जबसे मुलायम से दूर गए
राज ठाकरे जब कभी मौसम बे मौसम आते हैं
तो हमेशा मराठी मानुस की याद दिलाते हैं
अमर तो लखनऊ में मेरा दरवाजा ही खोलना भूल गए
दिल्ली में रहते हैं हमेशा जमें जबसे मुलायम से दूर गए
राज ठाकरे जब कभी मौसम बे मौसम आते हैं
तो हमेशा मराठी मानुस की याद दिलाते हैं
कवी महोदय तो अब आते नहीं
लगता है वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के
चक्कर में कुछ खाते नहीं......
(बाकी कल)
तेज प्रताप सिंह 'तेज'
ha ha ha...waah kya soch hai....
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
ऐसा सुधरा हुआ हास्य तो केवल आप ही लिख सकते हैं!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
shastri ji dhanyawaad
ReplyDeleteआपकी व्यन्गात्मक कविता का निशाना बिल्कुल सटीक है.यही स्वस्थ हास्य की परम्परा है .इसे बरकरार रखें .
ReplyDeleteविजय सिंह मीणा , सहायक निदेशक राजभाषा , नागर विमानन सुरक्षा ब्युरो , जनपथ भवन नई दिल्ली
मोबाईल 09968814674