दर्द और यादों का समेटा है
हर पल का लुटता सवेरा है
घाव से भरा पत्र....
जो उसने आज माँ को भेजा है
निकालो मुझे इस अन्धकार से बाहर
की सवेरा भी अब मुंह छिपाने लगा है
मैं और जिन्दा रह नहीं सकती
बिना वजह आसुओं के घूँट
पी नहीं सकती.....
बाबा को जल्दी भेजो यहाँ
उनकी लाडली जिन्दा रहते अब और
मर नहीं सकती.....
अरमानो के झूले पर अभी है उड़ना मुझे
की इतनी जल्दी मैं एक ढेला जहर का
खा नहीं सकती.....
एक-एक करके बिक रहे हैं सारे सपने
जिंदगी का दिया भी अब बुझने लगा है इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं माँ की
दहेज का तेल अब चुकने लगा है........
तेज प्रताप सिंह 'तेज'
bahut sahi janaab aankhein nam ho gayi......
ReplyDeletekuch aisa hi likha tha padhiyega....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/2010/04/blog-post_908.html
Dahej ke abhishaap se mukti ke liye yuvaon ko sakht kadam uthane hi honge.. apne mata-pita ko samjhana hoga..
ReplyDeleteएक-एक करके बिक रहे हैं सारे सपने
ReplyDeleteजिंदगी का दिया भी अब बुझने लगा है
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं माँ की
दहेज का तेल अब चुकने लगा है.......
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं....... बहुत सुंदर कविता....
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
ReplyDeleteदहेज अभिशाप है...
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना.
एक-एक करके बिक रहे हैं सारे सपने
ReplyDeleteजिंदगी का दिया भी अब बुझने लगा है
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं माँ की
दहेज का तेल अब चुकने लगा है........
... samvendana se paripurn maarmik rachna ....
Bahut dukh hota hai ki aaj bhi Dahej ka danav Sursa sa muuhn faade jagah gagah maujod hai....
Aapko Bahut shubhkamnayne..
बेहद सशक्त और सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
ek behad sashkt avam prabhav chodne wali kavitaएक-एक करके बिक रहे हैं सारे सपने
ReplyDeleteजिंदगी का दिया भी अब बुझने लगा है
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं माँ की
दहेज का तेल अब चुकने poonam
लगा है
sabhi ka mera dhanyawaad
ReplyDeleteउनकी लाडली जिन्दा रहते अब और
ReplyDeleteमर नहीं सकती.....uf! Kitni vedna hai...