प्रतिबिम्ब की तरह स्वछ,
स्वप्न जैसी निर्मल,
सुगंध पुष्प की!!
चन्चलता स्वर्ग की अप्सरा जैसी.....
और सरसराहट रात के अँधेरे जैसी,
आवेग़ और संवेग मैं निपुड,
अमूल धरोहर है ....
मेरे मन की बाला !
पुष्प देख किसी उपवन के,
अन्कुठित हो जाती बाला॥
मनोरंजन बरसाती बाला,
करताला....................
मेरी बाला !
स्वाभाव में सुंदरी की सुन्दर काया
भक्ति मैं ईस्वर की माला,
वीर पुरुष का साहस.........
अगनी की तपस,
विद्या मैं सरस्वती जैसी,
और संगीत में नारद मुनि...
अटखेलियां करती बाला,
करताला..............
मेरी बाला
उपलब्धियों का विज्ञान ,
यमराज की मौत...
अस्थि का भस्म,
सतिव्र्ता में सीता और अहिल्या जैसी,
लालिमा में सुबह के सूरज जैसी....
तेज फैलती बाला,
करताला.................
मेरी बाला
बाला
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