इच्छा है कुछ प्राप्ति की,
धरती से गगन पर अवतरित होने की..
उखाड़ फेंकू तिमिर को,
बन जाऊं मयंक की ज्योत्सना
अगनी को करूँ अलंकृत
पुरस्कृत करूँ देवराज के रूप को
भार्या कहलाऊं हनुमान की
और मूल्य जीवन की ,
अभिशाप का बन जाऊं वरदान,
फल मिले बिना परिश्रम के.......
पिघला दूँ रेत की गर्मीं,
शाज बन जाऊं संगीत की
और चादर मौत की,
पुस्तक की भाषा बनूँ ,
परोसूं भोजन का स्वाद...
चिंता बनूँ बिना कारण
एहसास किसी मदिरा शेवन की,
और नीर मीन की....
इच्छा है कुछ प्राप्ति की,
धरती से गगन पर अवतरित होने की॥
तेज प्रताप सिंह
३/१/२०१०
बहुत सुन्दर!!
ReplyDelete’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
aisi hi abhilasha chahiye aisi hi ichchha chahiye Taj...
ReplyDeletekeep it up
Jai Hind...