Thursday, February 18, 2010

हिन्दी साहित्य और संस्कृति के लिए एक दाग

आज मैं जो कुछ भी लिखने जा रहा हूँ वह हिन्दी साहित्य और संस्कृति के लिए एक दाग है
मैं लखनऊ जाने के लिए काफी देर से विमान का इन्तजार कर रहा था की सहसा मेरी नजर बगल मैं बैठे एक व्यक्ति पर पड़ी.
उस व्यक्ति के हाथ में एक लैपटॉप था जिसपर वह भारतीय साहित्य और संस्कृति के बारे में एक रिपोर्ट तैयार कर रहा था.
उसी लेटर के कुछ हिस्से ......
टू,
दा हेड ऑफ़ वर्ल्ड हेरिठेज़ एंड कल्चर,
ओनली फॉर स्टाफ
(में यहाँ हिन्दी रूपांतर लिख रहा हूँ)
१-भारत में कोई भी कल्चरल अकादमी अन्तार्रस्त्रिये रूप से विकसित नहीं हैं .
२-भवन और पुस्तकालय भी अन्तार्रस्त्रिये मानक को पूरा नहीं करते .
३-सुरक्षा के नाम पर एक या दो व्यक्ति हैं जो की टाइम पर नहीं आते .
४-सबसे बड़ी समस्या रख रखाव और सफाई की है.
५-भारत को इस और काफी ध्यान देने की जरूत है .
फ्रॉम xxxxxx
बाद में यह जानकर आप को और भी आश्चर्य होगा की वह व्यक्ति अमेरिकेन अकादमी का था.
आज मेरा सवाल उन सब से है जो इन संस्थाओं से जुड़े है....
अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी संस्कृति को अपने ही हाथों से मार देंगे
और तब शायद गंगा जल भी ना मिले मोच्छ दिलाने के लिए.

2 comments:

  1. are isne to kuch bhi nahi likha...list bahut lambi hai hamari khamiyon ki ...shareef tha bechara..:)
    ganga jal ???
    wo kya hota hai...ghabraaiye mat ..ganga swarg se utri thi ...ab 'swargeey' ho gayi hai...bahut jald sirf itihaas ya bhoogol ke kitaabon mein hi rah jaayegi...
    Likha aapne bahut accha hai...lekin hoga kya ????
    dhnaywaad...

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  2. ganga swarg se utri thi ...ab 'swargeey' ho gayi hai
    bilkul sahi kaha aap ne..............

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