चरित्र हूँ
अभी भी मैं पवित्र हूँ,
लगी नहीं किसी की हाय..
आज भी कौसिक हूँ
नया है परिवेश....
बदल गया मेरा भेष,
कोई भी पोत ले मुझे..
मेरे हैं अनेक रूप,
तराजू में तौल लो
या बना दो बाट,
बेंच दो किसी को
या खरीद लो
हैं बहुत खरीदार,
अब नहीं मैं पवित्र
चखा गया कई बार
पर आज भी हूँ शेष
किसी ने ना लगाया
मेरा सही भाव....
बस बिकता गया
पहले घर में बिका
अब बाहर कौड़ी में....
अब चरित्र नहीं चित्र हूँ,
लग गयी किसी की हाय,
हो गया मैं अपवित्र........
तेज प्रताप सिंह
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