प्रिय की अधर रस में भीगी माला,
अपने ही सृंगार में डूबती छाला,
रंग रूप के आवेग में समाती बाला,
मृद मधुर मिलन करने आती नित्य देवाला।।9।
बार-बार मद-मस्त आता पीनेवाला,
छल से छलकती घूँट में जीता जीनेवाला,
छलकते प्याले को होंठो से पोंछती बाला,
दर्शन आश में प्याले पर प्याला पीती, देवाला।।10।
कल्पना के भंवर में उमड़ती इन्द्र-माला,
सुन्दर अंगूरी रस में खोई अप्सरा मधुबाला,
एक बूंद जो गिरे स्वर्ग से, अमर हो जाये बाला,
भूल जाये विरह और ना जाये दुबारा, देवला।।11।
निलांगु होंठ हुए प्रिये-प्रीतम चूमते मीत-माला,
मर्यादा में राम, रास-लीला में कृष्ण-राधा,
धन्य हो जाये जो धरा, आज तेरे प्रेम से बाला,
ना लेगा अवतार फिर और एक, देवाला।।12।
अंगूरी पुष्प पर मंडराता भौंरा पीनेवाला,
जीवन की गहराई, प्याले में नापता मतवाला,
जब उतरी प्रिये के आँखों में मेरी चंचल बाला,
लगता हर प्याला उसे खाली, फीकी, देवाला।।13।
तेज प्रताप सिंह 'तेज'
बहुत खुब जी, बहुत ही सुंदर लगी बिलकुल मधुशाला जेसी, धन्यवाद
ReplyDeletesirji thoda lay daal dete harivansh rai bachchan ji ki madhushala jaisi ya koi alag bhi to aur maza aa jaata...waise lajawaab...
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteमातृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
ममतामयी माँ को प्रणाम!
अंगूरी पुष्प पर मंडराता भौंरा पीनेवाला,
ReplyDeleteजीवन की गहराई, प्याले में नापता मतवाला,
जब उतरी प्रिये के आँखों में मेरी चंचल बाला,
लगता हर प्याला उसे खाली, फीकी, देवाला।।13।
बहुत खूब .....!!