बाला जो की यहाँ मन के रूप में होगी, मधुशाला देवाला और हाला माला के रूप में.
(1)
सुख संचित कर हंसती बाला,
जीवन के रंग को जीती बाला
दुःख में पाँव पसार सोती बाला,
मिलती उसे जब देवाला की माला
दूनिया के दर्द से जब थक जाती बाला,
भीड़ के थपेड़ों में जब खो जाती बाला,
रिश्तों में जब कभी अकेली होती बाला
अपनों से तब मिलने आती वह देवाला
कुछ करने की भड़ास में जब रह जाती बाला
रिशवत के चंगुल में जब फंस जाती बाला
बड़े सपनों के बोझ में जब दब जाती बाला
पूरा करने तब अरमान सारे आती वह देवाला
Conti...
तेज प्रताप सिंह `तेज`
bahut khub
ReplyDeleteshabdar kavita
badhai aap ko is ke liye
bahut achcha prayog...
ReplyDeletebahut bahut badhai achche prayog ke liye ...
ReplyDelete.........बहुत खूब !!
ReplyDeleteकोशिश अच्छी रही
ReplyDeleteबढ़िया प्रयास....अच्छा लगा..
ReplyDeletesukriya..
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