समय के अभाव में आने में थोडा विलम्ब हुआ....पर चलिए जब आया ही हूँ, तो आप को
पिछले दिनों में स्लोवीनिया और ऑस्ट्रिया के जंगलों के कुछ चित्र दिखा देता हूँ.
तेज
Sunday, May 30, 2010
Thursday, May 20, 2010
स्वामी प्रेम .................'तेज'
प्रिये गये कहाँ
विरह की अग्नि में
तन-मन भस्म यहाँ।
विरह की अग्नि में
तन-मन भस्म यहाँ।
गृह स्वामी दर्शन में
मृग नयन पथरायी
हर्दय में शेष कंपन
मिलन मात्र बवरायी।
मिलन मात्र बवरायी।
त्याग परदेश प्रेम
चरण धरो गृह चौखटा
जो बना है बिना हरण
रावण अशोक वाटिका ।
रावण अशोक वाटिका ।
'तेज'
Wednesday, May 19, 2010
हिन्दी साहित्य के नाम पर हिन्दी, उर्दू, फारशी, और इंग्लिश की खिचड़ी परोस रहे हैं ब्लॉगर.....'तेज'
कुछ कारण बिना किसी कारण होते हैं पर जब कारण आवश्यकता से आगे निकल जाये तो उसका बोध कराना आवश्यक होता है.
कुछ ऐसा ही हो रहा है ब्लोगवाणी पर, कुछ अच्छे लोगों को छोड़ कर शेष लोग केवल संख्या बढाने के लिए ब्लोगिंग कर रहे हैं.
मैं स्वयं को भी हिन्दी का देवता नहीं समझता पर जो लोग अच्छा लिख रहे हैं, कम से कम वो तो ऐसा ना करें.
किसी को कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा.
'तेज'
Saturday, May 15, 2010
चिअर्स को हिन्दी में क्या कहेंगे..........'तेज'. ...
"Cheers" चिअर्स को हिन्दी में क्या कहेंगे.....
आसान सा सवाल है पर मैं फँस गाया इस चिअर्स के चक्कर में. हुआ ये की मैं कुछ अंग्रेज दोस्तों के साथ रात का खाना खाने बाहर गाया. लोगों ने झट से सोमरस (बियर ) का आर्डर कर दिया. अब क्या था कहने की देर थी की सोमरस सामने थी. लोगों ने हाला को हाथ से छुआ फिर बोले प्रोस्ट "prost" (चिअर्स को जर्मन में). लोंगों ने एक घूँट ही पिया था की मेरे तरफ देख कर बोले, इंडिया में प्रोस्ट को क्या कहते हैं. मुझे तो जैसे सांप ही सूंघ गाया हो, फिर इज्जत बचाने के लिए एकदम से बोल दिया "मस्त", अब आप ही बतायें मरता तो क्या ना करता. भाई साहब "मस्त" ने फिर जाम को ऐसे छुआ की आज तक हर देवाले में जब वो अंग्रेज मेरे साथ होते हैं तो "मस्त-मस्त" करते हैं.
तब से आज तक यही बात सोंच रहा हूँ आखिर "Cheers" चेअर्स को हिन्दी में क्या कहेंगे.....
कृपया करके सुझाव दें...
तेज प्रताप सिंह 'तेज'.
आसान सा सवाल है पर मैं फँस गाया इस चिअर्स के चक्कर में. हुआ ये की मैं कुछ अंग्रेज दोस्तों के साथ रात का खाना खाने बाहर गाया. लोगों ने झट से सोमरस (बियर ) का आर्डर कर दिया. अब क्या था कहने की देर थी की सोमरस सामने थी. लोगों ने हाला को हाथ से छुआ फिर बोले प्रोस्ट "prost" (चिअर्स को जर्मन में). लोंगों ने एक घूँट ही पिया था की मेरे तरफ देख कर बोले, इंडिया में प्रोस्ट को क्या कहते हैं. मुझे तो जैसे सांप ही सूंघ गाया हो, फिर इज्जत बचाने के लिए एकदम से बोल दिया "मस्त", अब आप ही बतायें मरता तो क्या ना करता. भाई साहब "मस्त" ने फिर जाम को ऐसे छुआ की आज तक हर देवाले में जब वो अंग्रेज मेरे साथ होते हैं तो "मस्त-मस्त" करते हैं.
जाम से जाम टकराता हर अंग्रेज पीनेवाला,
मस्त-मस्त कहकर घूँट पे घूँट पीता मतवाला,
अब क्यों खुश ना हो मेरी चंचल साकी बाला,
जब फर्क मिटाती अंग्रेजी हिन्दी "मस्त", देवाला तब से आज तक यही बात सोंच रहा हूँ आखिर "Cheers" चेअर्स को हिन्दी में क्या कहेंगे.....
कृपया करके सुझाव दें...
तेज प्रताप सिंह 'तेज'.
Wednesday, May 12, 2010
हवा कुछ कहने आई है .........`तेज`
कुछ पूराने वृछों से हवा बह आई है
अकेले पड़े शमशान के कब्र से,
आजादी की सुगंध संग लेकर आई है
हवा कुछ कहने आई है ।।
जो भूल गये हैं कीमत आजादी की,
उनको लम्बी नींद से जगाने आई है
पूराने पड़ चुके सोये जंगी हथियारों में,
फिर से आजादी का जोश जगाने आई है
हवा कुछ कहने आई है ।।
काटा था सर फिरंगी का जिसने,
उस जंगे-तलवार का दर्द गिनाने आई है
कमजोर बैठे कबूतरों को उड़ाने,
खूंखार आजादी के बाज जगाने आई है
हवा कुछ कहने आई है ।।
कब्र में पड़े शेरों के सपनों का भारत,
आज हमारे हवाले करने आई है
खाली पड़े बंजर मैदान से,
सूखे वृछ उखाड़ नये लगाने आई है
हवा कुछ कहने आई है।।
तेज प्रताप सिंह `तेज`
Saturday, May 8, 2010
हरिवंश राय बच्चन जी को समर्पित "प्रियतम की बाला"........'तेज'
प्रिय की अधर रस में भीगी माला,
अपने ही सृंगार में डूबती छाला,
रंग रूप के आवेग में समाती बाला,
मृद मधुर मिलन करने आती नित्य देवाला।।9।
बार-बार मद-मस्त आता पीनेवाला,
छल से छलकती घूँट में जीता जीनेवाला,
छलकते प्याले को होंठो से पोंछती बाला,
दर्शन आश में प्याले पर प्याला पीती, देवाला।।10।
कल्पना के भंवर में उमड़ती इन्द्र-माला,
सुन्दर अंगूरी रस में खोई अप्सरा मधुबाला,
एक बूंद जो गिरे स्वर्ग से, अमर हो जाये बाला,
भूल जाये विरह और ना जाये दुबारा, देवला।।11।
निलांगु होंठ हुए प्रिये-प्रीतम चूमते मीत-माला,
मर्यादा में राम, रास-लीला में कृष्ण-राधा,
धन्य हो जाये जो धरा, आज तेरे प्रेम से बाला,
ना लेगा अवतार फिर और एक, देवाला।।12।
अंगूरी पुष्प पर मंडराता भौंरा पीनेवाला,
जीवन की गहराई, प्याले में नापता मतवाला,
जब उतरी प्रिये के आँखों में मेरी चंचल बाला,
लगता हर प्याला उसे खाली, फीकी, देवाला।।13।
तेज प्रताप सिंह 'तेज'
Thursday, May 6, 2010
बाला...नये रूप में.......`तेज`

"बाला" जो की यहाँ "मन" के रूप में होगी, "मधुशाला" "देवाला" और "हाला" "माला" के रूप में. मैंने "बाला" पर जादा जोर दिया है, की वह क्यों देवाला जाती है.
सुख संचित कर हंसती-खिलखिलाती,
जीवन के रंग को जीती-सहलाती,
दुःख में पाँव पसार सोती बाला,
मिलती उसे जब देवाला की माला।।1।
अँधेरी तरंगो के भीगे नीले नभ में,
भंवर की सिमटती लम्बी गहराई में,
जीवन की अटखेलियाँ करती बाला,
आती जब वह भुलाने दुःख, देवाला।।2।
सपनों की गहराई में दिन-रात खोई,
हाथों में माला लिए सुख की, रातों रोई,
इससे अच्छा नहीं कोई शिवाला, कहती बाला
जहाँ पराये लगते भाई, आती जब देवाला।।3।
दूनिया के दर्द से जब थक जाती,
भीड़ के थपेड़ों में जब खो जाती,
रिश्तों में जब कभी अकेली होती बाला,
अपनों से तब मिलने आती वह देवाला।।4।
कुछ करने की भड़ास में जब रह जाती,
रिशवत के चंगुल में जब फंस जाती,
बड़े सपनों के बोझ में जब दब जाती बाला,
पूरा करने तब अरमान सारे आती वह देवाला।।5।
राजनीति के गंदे रंग, आतंकवाद की शक्ति से,
जब खिन्न हो जाती चंचल अलबेली बाला,
आती नई सुबह के इंतज़ार में लेने माला, देवाला।।6।
महबूब की मीठी सुनहरी बीती याद में,
सुन्दर बालाओं और मिलन की आश में,
भरे प्याले की कलकल गहराई में, बाला
जीवन खोजने आती, लेने माला, देवाला।।7।
नेता-भ्रस्टाचार के भरोसे छोड़ देस-ईमान,
मंदिर-मस्जिद में छोड़ भगवान-अल्ला,
रामायण-कुरान में छोड़ राम-रहीम, बाला
आती क्यों करने अपमान, पहन माला, देवाला।।8।
Conti...
तेज प्रताप सिंह `तेज`
Tuesday, May 4, 2010
देवाला की माला....
(2)
अँधेरी तरंगो के नीले नभ में
भंवर की सिमटती गहराई में
सुलगती आग की लपट में
अटखेलियाँ करती बाला....
विधवा की जवानी
गद्दार की देश भक्ति
राजनीति के गंदे रंग
और आतंकवाद की शक्ति
से खिन्न होकर आती बाला
डालने देवाला के माला....
महबूब की मीठी याद में
मिलन की सुन्दर आश में
थिरकती सुन्दर बालाओं में
जीवन खोजने आती बाला
लेने देवाला की माला....
Conti...
तेज प्रताप सिंह `तेज`
Monday, May 3, 2010
बाला......
वैसे हाला और मधुशाला पर बहुत कुछ लिखा गाया है पर मेरी कोशिश आज यहाँ मधुशाला को दूसरे रूप में जिन्दा करना है.
बाला जो की यहाँ मन के रूप में होगी, मधुशाला देवाला और हाला माला के रूप में.
(1)
बाला जो की यहाँ मन के रूप में होगी, मधुशाला देवाला और हाला माला के रूप में.
(1)
सुख संचित कर हंसती बाला,
जीवन के रंग को जीती बाला
दुःख में पाँव पसार सोती बाला,
मिलती उसे जब देवाला की माला
दूनिया के दर्द से जब थक जाती बाला,
भीड़ के थपेड़ों में जब खो जाती बाला,
रिश्तों में जब कभी अकेली होती बाला
अपनों से तब मिलने आती वह देवाला
कुछ करने की भड़ास में जब रह जाती बाला
रिशवत के चंगुल में जब फंस जाती बाला
बड़े सपनों के बोझ में जब दब जाती बाला
पूरा करने तब अरमान सारे आती वह देवाला
Conti...
तेज प्रताप सिंह `तेज`
Subscribe to:
Posts (Atom)