यादों में जिन्दा दागों को
सिराहने पड़े सपनों को
पोंछ दो मेरी इस सफेदी में
लम्बी होती इन दोपहरी को
सामने लिखी उधारी को
उनकी दी हुई हर निशानी को
पोंछ दो मेरी इस सफेदी में अब ना आयेंगे वो दुबारा
इन सफेदी में सिन्दूर भरने
ना ही मेरी भूरी आँखों में
अपनी सूरत दिन-रात देखने 'तेज'
(चित्र साभार गूगल)
waah sirji bahut din baad aaye nayi kavita leke...aur virah ki baat keh gaye....sundar abhivyakti...
ReplyDeleteबहुत भावुक लगी आप की कविता, ओर उस से भी भावुक सफ़ेद कपडो मै यह चित्र
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeletedil se likhi hai aapne...
shukriya..!
दिल में लगे खरोंचों को
ReplyDeleteयादों में जिन्दा दागों को
सिराहने पड़े सपनों को
पोंछ दो मेरी इस सफेदी में
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
सफेदी में वो ज़ज्बा है कि आत्मसात कर ले हर रंग को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
सार्थक; प्रेरक और सचेतक भी
Kaash aisa ho..is safedi me koyi jeevan ke rang phir ek baar bhar de!
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