Thursday, December 31, 2009

लगता है कल रात तुम सोये नहीं

फिर वही रात,
काली रात...
एक और रात,
अकेली रात...
शाम के बाद की रात,
किसी के इंतज़ार की रात ...
नींद आये वो तनहाई की रात,
अन्धकार से भरी आसुओं की रात.....
फिर .........जाने को है रात ........
स्वागत नयी सुबह की,
उनको देखने की और कुछ कहने की ....
आँखों से आँखों के लड़ने की,
बिना बोले रात की बात समझने की,
और फिर मुस्कुराके उनके कहने की ......
लगता है कल रात तुम सोये नहीं,
हाँ नींद नहीं आई ....क्यों रात भर पढाई की क्या......
नहीं ऐसा कुछ नहीं है,
अपना ख्याल रखा करो..........??
अगले दिन ...............................
हाथ हिलाकर आने का इशारा करना,
बिना रुके चलते रहना और
रास्ते पर लगे फूल को तोड़ना...
फिर धीरे से मुस्कुराके कहना कैसे हो.....
अच्छा हूँ , और तुम ??
अच्छी हूँ...
थोडा रुकना और फिर से वही बात कहना....?
लगता है कल रात तुम सोये नहीं,
हाँ नींद नहीं आई...
क्यों क्या हुआ पढाई कर रहे थे क्या,
नहीं ऐसी कोई बात नहीं बस.......
अपना ख्याल रक्खा करो,
अगले ही पल बात को बदलना और कहना......
आज मेरी माँ रही हैं कुछ सामान खरीदना है
हम लोग नया घर बना रहे हैं उसी के लिए..
कब तक रुकेंगी?
शाम तक चली जांएगी क्यों..
नहीं कुछ बात करनी थी..
चलो मैं बाद मैं फ़ोन कर लूँगा
कोई काम हो तो बताना
बाय ....बाय
बाय
टेक केयर
यू टु.....

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