Thursday, July 26, 2012

शौचालय दर्द


शौचालय हंस कर बोल पड़ा
मैं तो एक हूँ पर लोग क्यों अनेक हैं 
किसी का मोटा, किसी का पतला 
कोई गोरा तो कोई काला................
सब अपनी तशरीफ़ रखते हैं 
खुद तो पकवान खाते हैं 
मुझे सडा-गला बचा हुआ खिलाते हैं
राजनीती में,
पहले अन्ना जी की खुसबू मिलती थी 
तो आज अरविन्द ने सिटकनी लगायी है 
योग गुरु रामदेव तो कभी-कभी आते हैं 
जब कभी अन्ना उन्हें भीड़ जुटाने को बुलाते हैं 
उधर प्रणव दा मुझे छोड़ मेरे मित्र के यहाँ क्या गए 
तो संगमा जी नाहक ही मुझसे उदास हो गए 
मनमोहन जी तो आज कल रोज आते हैं 
पर स्वाद सोनिया जी का छोड़ जाते हैं 
पता नहीं सरद पवार जी को क्या हुआ है 
जो आज कल चौहनी खुसबू के याद दिलाते हैं 
मोदी जी का हाजमा अपनों ने इतना खराब किया  
की वो देश छोड़ मेरे जापानी मित्रो में मशगूल हैं
अखिलेश जी के खाने में तो कुछ और ही बात है 
क्योंकि उन्हें मुलायम और आजम हाथ से खिलते हैं 
ममता के तसरीफ का तो कोई भरोसा नहीं 
आ गयीं तो ठीक है नहीं तो कोई और सही 
राहुल गाँधी पहले चुपके-चुपके आते थे 
पर अब पूरी जिम्मेदरी लेने को हैं तैयार 
माया जी ने 6 महीने का अवकाश ले रखा है 
पार्कों को छोड़ घर में ही तसरीफ जमा रखा है 
राज ठाकरे मराठी मानुस की खुसबू भी नहीं देते 
गाहे बगाहे टोल टैक्स अलग से दे जाते हैं 
नीतिस ने भी अपना जलवा अलग दिखा रखा है 
भाजपा को छोड़ तसरीफ कांग्रेस में टिका रखा है 
मेरे क्या मैं तो अपने दर्द में जी रहा हूँ 
इस मंहगाई में........ 
जो कुछ बचा कुचा मिल रहा खा रहा हूँ 
और अपने किस्मत पे रो रहा हूँ 


डॉ तेज प्रताप सिंह