Thursday, September 23, 2010

रेल गाड़ी फिर से पटरी पर .....'तेज'

काफी दिन बाद आने का मौका मिला...चलिए यात्रा आगे बढ़ाते हैं....
(11)
जिस सीट पर स्वामी बैठा था उसी के ऊपर वाली सीट पर एक और यात्री सो रहा था पर बार-बार स्वामी से पूछ रहा था.....
भाई रामनगर आ जाये तो बता देना
स्वामी बोला हाउ बता दूंगा .....
थोड़ी देर बाद फिर से वह यात्री बोला रामनगर आ गाया क्या (सोना गुनाह है रेल में...बुदबुदाता हुआ)
स्वामी बोला अभी नहीं...आयेगा तो बता दूंगा
१० मिनट भी नहीं गुजरा था की वह फिर बोल पड़ा...आ गाया क्या
स्वामी झल्ला कर दूसरी सीट पर जाकर बैठ गाया..
इतनी देर में ट्रेन रामनगर रुकी पर इसबार उस यात्री ने किसी से कुछ नहीं पूछा.....
थोड़ी देर बाद वह यात्री फिर जगा और स्वामी के पास जाकर पूछा, रामनगर आ गाया क्या....
स्वामी गुस्से में बोला हाँ भाई... रामनगर तो कब का निकल गाया....
यात्री पहले थोडा सकपकाया फिर बोला..चलो कोई बात नहीं फिर से वापस आ जाऊंगा इसी ट्रेन से (सोना गुनाह है रेल में...बुदबुदाता हुआ).......
स्वामी बोला-और वो टिकट
टिकट वो क्या होता है वो तो मैंने आज तक नहीं लिया....
पकडे गये तो....??
तो क्या हरजाना भर दूंगा.....
भाई लेकिन वो तो तुम्हारे टिकट की दाम से तो बहुत जादा है...
लेकिन यह मेरा २०वा चक्कर बिना टिकट...जोड़ो तो ऊससे तो बहुत कम है, और अगर बच गाया तो २१वा
महान है भाई तू तो.... स्वामी बोला
आप भी महान बन सकते हो....(सोना गुनाह है रेल में...बुदबुदाता हुआ).......और फिर जाकर सो गाया
(12)
मोटे बहुत आराम से अपने सीट पर चुपचाप बैठा हुआ था...ये स्वामी से देखा ना गाया और पूछ पड़ा
यार मोटे ई तू इतना चुपचाप कैसे हो कौनो दवाई मिल गयी है का..मैं ही तब से बोले जा रहा हूँ
मोटे बोला इमां कोई खास बात थोड़ी ना हा....
स्वामी..फिर भी इतना चुप-चाप तुमका पहले नहीं देखा ना
अच्छा तुम भी जाना चाहत हो कैसे
हाँ बिलकुल मोटे......
तो फिर अपनी हाथ की कौनो दो अंगुलिओं को आपस में मसलना शुरु कर दो....अपने आप चुप हो जाओगे
स्वामी हाँ में हाँ मिलाता हुआ अंगुलिओं को आपस में मसलना शुरू कर दिया फिर ५ मिनट बाद झल्ला कर बोला निहायत बेकार का आईडिया है तुम्हार...इससे भला कोई चुप कैसे रहा सकता है...
मोटे थोडा मुस्कुराया फिर बोला रह सकता है
रहने दो तुम अपनी ई बेकार के नुस्खे........
हाउ.. पर स्वामी तुमने अंगुलिओं को आपस में मसलने से पहले उसे नाक के अन्दर डाला था की नहीं.....
ससुर तुम तो कमाल के हो कोई नहीं पहुँच सकता है तुम तक ....

'तेज' 

Thursday, September 2, 2010

वैशाखनंदन सम्मान

(आज मिला एक खुशी भरा ईमेल)

माननिय श्री तेज प्रताप सिंह जी
सादर अभिवादन
आपके द्वारा प्रतिभागी के बतौर दिये गये सहयोग के लिये हम आपके अतिशय आभारी हैं.
इस प्रतियोगिता में आपकी रचना को कांस्य सम्मान से नवाजा गया है. इस हेतु आपको
सुश्री सीमा गुप्ता की काव्यकृति विरह के रंग की प्रति भेजी जानी है. आपसे निवेदन है कि
लौटती मेल से आपका भारत का पोस्टल पता हमें भेजे जिससे आपको यह प्रति भिजवाई 
जा सके.
ऐसे आयोजनों के लिये भविष्य में भी आपके सहयोग के आकांक्षी रहेंगे.
आपके प्रमाणपत्र का कोड नीचे दे रहे हैं. 

सादर
वैशाखनंदन सम्मान कमेटी















वैशाखनंदन सम्मान कमेटी को मेरा धन्यवाद 
तेज प्रताप सिंह