Saturday, August 7, 2010

लोग सरस्वती को खरीद रहे हैं

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आज ही इंजीनियरिंग कॉलेज का रिजल्ट आया था....
"बेटा मनोज तुम्हारे रिजल्ट का क्या हुआ?
हाँ पापा लिस्ट में दूसरा नंबर है, अच्छा कॉलेज मिल जायेगा 
गुड, मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ.
वो तुम्हारे दोस्त सोनू का क्या हुआ ?
पापा उसको शायद कोई कॉलेज ना मिल पाए उसके नंबर बहुत कम हैं.
चलो कोई बात नहीं अगली बार शायद उसे भी कुछ अच्छा मिल जाये."
अगले दिन मनोज कॉलेज में दाखिला लेने पहुंचा तो उसे वहां सोनू के पापा भी मिल गये.
"हाँ बेटा मनोज कैसे हो...कैसा चल रहा है सब कुछ.
मैं अच्छा हूँ ...कॉलेज में दाखिला लेने आया हूँ  
बधाई हो..
पर आप यहाँ कैसे?
हाँ.. मैं भी सोनू का दाखिला कराने आया हूँ"
मनोज को तो बात समझ में नहीं आई कि आखिर सोनू को कैसे दाखिला मिल सकता है.
यही सोचता हुआ वह सोनू के पापा को नमस्ते करके अन्दर दाखिले के लिए चला गाया.
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दाखिला लेकर मनोज जब घर वापस आया तो बहुत परेशान था ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने आप को कोश रहा हो कि इतना पढने का क्या फ़ायदा जब सोनू को बिना मेहनत किये दाखिला मिल रहा है. इतने में उसके पापा आ गये, उसको परेशान देखकर पूँछ पड़े क्या हुआ सब कुछ ठीक तो है ना. मनोज ने दुखी मन से सारी बात बताई.
ये तो गलत है..पर ये सब हुआ कैसे? कोई बात नहीं तुम इसकी चिन्ता मत करो और आगे के बारे में सोचो.
मनोज सहमती से सिर हिलाकर बाहर चला गाया.
अगले दिन मनोज घर से थोडा जल्दी निकला यह पता करने के लिए कि ये सब हुआ कैसे.
कुछ दोस्तों से मिलने के बाद जो उसे पता चला उससे तो वह और भी परेशान हो गाया. 
मनोज के लिए ये कोई छोटी बात नहीं थी कि पैसे देकर कोई इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला कैसे ले सकता है. वह मन ही मन में सोंच रहा था कि मैंने इतनी पढाई कि इस कॉलेज में दाखिला मिल जाये, दिन रात एक कर दिया पर जब लोग यहाँ पैसे से दाखिला ले रहे हैं तो ये कॉलेज अच्छा कैसे हो सकता है. मनोज ने मन में ठान ली कि वह अब इस कॉलेज से अपना नाम हटा कर किसी और कॉलेज में जायेगा जो शायद देखने में अच्छा ना हो पर सरस्वती कि पूजा करता हो.
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सोनू के पापा आज बहुत गर्व से कह रहे हैं कि मेरा बेटा बी टेक कर रहा है और किसी के बेटे से कम नहीं है. लेकिन इस गर्व के पीछे एक कडवा सच ये है कि अगर सोनू को अपने बल पर बी टेक करना होता तो आज भी वो घर में बैठा होता. पैसे में इतनी ताकत कहाँ से आ गयी जो आज लोग सरस्वती को खरीद रहे हैं और देश में बने ना जाने कितने कॉलेज इन्हें बेच रहे हैं.
भ्रस्टाचार के लिए हम सरकार को कोसते हैं पर कभी अपने दामन को नहीं देखते. मुझे तो लग रहा है देश तो आगे बढ रहा है पर देश के लोग नहीं. 

                             खून वो नहीं जो सिर्फ अपने बाजुओं में बहे
                          कभी धरती पर भी एक कतरा गिरा कर देखो।।

तेज प्रताप सिंह `तेज`

9 comments:

  1. आज कल यही सब तो हो रहा है, बहुत सुंदर कहानी. धन्यवाद

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  2. वह दिन दूर नहीं जब अशिक्षित लोग ज्यादा चरित्रवान और इमानदार होंगे और जिससे इस देश और समाज के विकाश की आशा की जा सकेगी क्योकि शिक्षा तो अब भडुओं और शिक्षा माफियाओं के गंदे हाथों में खेल रही है ...

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  3. बहुत सार्थक कथा के साथ अपनी बात कही ..

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  4. खून वो नहीं जो सिर्फ अपने बाजुओं में बहे
    कभी धरती पर भी एक कतरा गिरा कर देखो।।

    Kya baat kahi hai! Yah to sach hai ki,jab aise waqyaat ke bareme sunte hain to behad afsos hota hai.

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  5. यहां तो ऐसा हुआ कि एक को प्रतिभा के बल पर और दूसरे को पैसे के बल पर यानि दोनो को कॉलेज में सीटें मिल गयी .. पर कभी कभी सीटों की कमी कॉलेजों को इस स्थिति में पहंचा देती हैं कि प्रतिभा को दरकिनार करते हुए पैसेवालों को सीट देनी पउती है .. खासकर सरकारी कॉलेजों में ऐसा होने से विद्यार्थियों को भयंकर तवान से गुजरना पडता है .. हालांकि इसका प्रतिशत बहुत कम है पर है !!

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  6. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  7. aap ka bahut dhanaywaad charcha manch par is post ko lene ki liye. Aur un sabhi ko bhi jisne ise saraha.

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