Friday, June 4, 2010

सफेदी............'तेज'

दिल में लगे खरोंचों को 
यादों में जिन्दा दागों को
सिराहने पड़े सपनों को
पोंछ दो मेरी इस सफेदी में 

लम्बी होती इन दोपहरी को  
सामने लिखी उधारी को 
उनकी दी हुई हर निशानी को 
पोंछ दो मेरी इस सफेदी में

अब ना आयेंगे वो दुबारा 
इन सफेदी में सिन्दूर भरने 
ना ही मेरी भूरी आँखों में 
अपनी सूरत दिन-रात देखने  

'तेज'
(चित्र साभार गूगल)

7 comments:

  1. waah sirji bahut din baad aaye nayi kavita leke...aur virah ki baat keh gaye....sundar abhivyakti...

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  2. बहुत भावुक लगी आप की कविता, ओर उस से भी भावुक सफ़ेद कपडो मै यह चित्र

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  3. दिल में लगे खरोंचों को
    यादों में जिन्दा दागों को
    सिराहने पड़े सपनों को
    पोंछ दो मेरी इस सफेदी में

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  4. सफेदी में वो ज़ज्बा है कि आत्मसात कर ले हर रंग को
    बहुत सुन्दर रचना
    सार्थक; प्रेरक और सचेतक भी

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  5. Kaash aisa ho..is safedi me koyi jeevan ke rang phir ek baar bhar de!

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