कुछ कारण बिना किसी कारण होते हैं पर जब कारण आवश्यकता से आगे निकल जाये तो उसका बोध कराना आवश्यक होता है.
कुछ ऐसा ही हो रहा है ब्लोगवाणी पर, कुछ अच्छे लोगों को छोड़ कर शेष लोग केवल संख्या बढाने के लिए ब्लोगिंग कर रहे हैं.
मैं स्वयं को भी हिन्दी का देवता नहीं समझता पर जो लोग अच्छा लिख रहे हैं, कम से कम वो तो ऐसा ना करें.
किसी को कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा.
'तेज'
तेज़, मैं तुम्हारी सोच से यहाँ इत्तेफाक नहीं रखता.. क्योंकि यदि हिंदी की ही बात करें तो कोई शुद्ध हिंदी बोल ही नहीं सकता आज के समय में. 'शुद्ध हिंदी ही संस्कृत है' ये तो तुमने सुना ही होगा. और कोई भाषा तभी समृद्ध होती है जब वह अन्य भाषाओँ के शब्द अपने में समाहित करने की क्षमता रखती हो.. न की वो भाषा या उसके भाषाविद अन्य भाषाओँ से परहेज़ करें. अंग्रेजी भाषा के खुद के कितने शब्द हैं जरा सर्च करना(सिर्फ सैकड़ों में ही हैं.. बाकी उसने दुनिया भर के शब्दों को अपने में समाहित किया है) यही बात हिंदी के साथ है.. हिंदी ने हमेशा से ही हर जबान के शब्दों को अपने में मिलाया.. कितने आक्रमणकारी आये उन सबकी भाषाएँ आज हिंदी से जुड़ गयी हैं और हिंदी उनसे.. सुबह से शाम तक हम जितने शब्द बोलते हैं उनमे लगभग सभी भाषाओँ का योगदान होता है और यही आम बोल-चाल की भाषा कही जाती है. ऐसे विषय पर न ही सोचो तो अच्छा है मेरे दोस्त. अगर हिंदी को समृद्ध करना है तो साधारण अंग्रेजी और अन्य भाषाओँ के शब्द जो की सब समझते हों.. हिंदी के छाते के नीचे लाने ही होंगे. आज का साहित्य रामायण और महाभारत काल की भाषा में नहीं लिख सकते क्योंकि तब तक न ही भारत में अँगरेज़ आये थे और न मुग़ल.
ReplyDeletechhama nahin kshama kar lena
ReplyDelete"दीपक जी" से बिलकुल सहमत
ReplyDeleteजो "लोगों" को आसानी से समझ आ जाये या जो सामान्य बोलचाल की भाषा हो वही भाषा ....
जहाँ "दूसरी" भाषा के शब्दों की बात है ...अगर जरुरत पड़ती है ...तो लेने चाहिए ..और लिए भी है ..
पर अपनी भाषा "हिंदी" के शब्दों की वर्तनी ही सही ना हो तो .................
जैसे "छमा"...और "क्षमा"
nice
ReplyDeletemain bhi Dipak ji se sehmat hun...agar ham Sanskrit roopi hindi se chipake rahe to badlaav ke saath chal nahi paayenge aur saahity marne lagega...kyunki mughal kaal se hi hamari bhasha kaafi badal gayi thi...tab se hi shudhta kam hui...aur aaj to waise hi hindi apna astitv kho rahi hai...aise mein agar use kuch aur bhashaon ke shabdo se saja kar jinda rakha jaaye to kya bura hai...
ReplyDeleteआपने सच कहा है। सीधी खड़ी बात।
ReplyDeleteमैं आपसे सहमत हूँ...ठीक है हिंदी में भी कुछ शब्दों को दूसरी भाषाओँ से अपना लिया गया है,लेकिन जिनका विकल्प है उनको तो बोलना चाहिए!अब देखिये ..केरल को केरला ,प्रतिशत को फीसदी और विस्फोट को धमाका बोलना जरूरी है क्या?हमें एक दुसरे की गलतियाँ निकालने से पहले ये सोच लेना चाहिए की पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोने वाली भी हिंदी ही है.जो संपर्क भाषा के रूप में काम करती है.....!हिंदी की दुर्दशा के जिम्मेवार भी हम ही है!हिंदी अभिनेता ,नेता और खिलाडी हर जगह अंग्रेजी में क्यूँ बतियाते है?हम घरों,दुकानों के नाम अंग्रेजी में क्यूँ लिखना चाहते है?आज ये हिंदी का बढ़ता प्रभाव ही है की गूगल को भी हिंदी सेवा शुरू करनी पड़ रही हैऔर हम?
ReplyDeleteभाई इस बात के लिये आप से सहमत है, लेकिन इस बात के लिये हम दोषी नही, जेसा समाज मिला हम उस मै समाते गये, अभी तो फ़िर भी ठीक है, लेकिन आने वाली पीढी को देख कर सर शर्म से झुक जाता है, जिन्हे हिन्दी बोलनी भी नही आती जब कि वो पेदा भारत मै हुये है, ओर उस से अच्छी हिन्दी विदेशो मै रह रहे भारतिया बच्चे बोल लेते है,
ReplyDeleteshaayad ye "hidustaani" bhaasha hai jo ham jaise chhote or tuchchh bloger pryog kar rahe hai....
ReplyDeletekunwar ji,
बहुत ही सटीक लेखन!
ReplyDeleteबढ़िया हिदायत!
आप जो कहना चाहते हैं उसकी भावना को समझ रहा हूँ...यहाँ ब्लॉग पर तरह तरह के लोग आते हैं जिनकी पृष्ठभूमि और भाषा ज्ञान का स्तर काफी असमान होता है इसलिए जिसे आप हिन्दी ब्लॉग समझ रहे हैं वह आम आदमी के सम्प्रेषण की एक कोशिश भर है। जो लोग गम्भीरता से साहित्यिक लेखन कर रहे हैं वे अपनी भाषा से सम्बन्धित जिम्मेवारी को अच्छी तरह से जानते हैं उन्हें मालूम है कि कहाँ किस तरह से लिखना है ।
ReplyDeleteमुझे तो ज्यादा तकलीफ रोमन में लिखी टिप्पणियों से होती है...मैं उन्हें पढता ही नहीं क्यों कि उन लोगों के विषय में तो साफ तौर पर कहा जा सकता है कि वे किसी भी तरह से भाषा के मुद्दे पर संवेदनशील नहीं हैं ।
आपकी चिन्ता उचित है।
ReplyDeleteवैश्वीकरण के इस दौर में किसी भी भाषा में विदेशज शब्दों का आगमन एक सहज-सरल व स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन उन शब्दों का आत्मसातीकरण किस सीमा तक होना चाहिए, इस पर हम हिंदीभाषियों को अवश्य विचार करना चाहिए।
main to sirf itna kah sakta hun ki dusri bhasaon ko ek had tak hi hindi main ghusedna chyae jisse kam se kam hindi jinda rahe nahi to kuch din baad 30% hindi aur 70% dusri bhasa hogi.
ReplyDeleteDeepak, dileep aap log aisa kah ker haath picche nahin kinch sakte, ya phir bloliye ki main hindi main nahin aam bol chaal ki bhasa main likh raha hun.
Manoj ji, Diwkar ji,Rejeshwar ji, Rajnish ji, Raj sir aur Sashtri sir aap ka bahut dhnaywaad meri baat se sahmat hone ke liye.
ReplyDeleteaap ki chinta bilkul sahi hai.
ReplyDeleteकम से कम कोशिश हो तो हो ही रही है सीखने की सीख भी जायेंगे
ReplyDeleteजरूरी ====== अरबी शब्द
ReplyDeleteहद ======== अरबी शब्द
बाकी ====== अरबी शब्द
ब्लोगिंग ==== अंग्रेजी शब्द
खुद ======= पारसी शब्द
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आपके अत्यंत लघु आलेख में उक्त त्रुटियाँ दृष्टिगोचर हुईं हैं. कृपया अवलोकन करके उचित निदान करें. विशुद्ध हिन्दी का लेखन और उसका पाठन अत्यंत कठिन है भ्राता. ये तो हिन्दी माता की अनुकम्पा है जो संसार की समस्त भाषाओँ को अंगीकार कर लेती है और इसे समृद्ध बनाती है.
आशा है आप सरस और मनमोहक लेखन की और एकाग्रचित्त होंगे और अपने लेखन को समाजोपयोगी बनाने की दिशा में अग्रसर होंगे. देवता कोई नहीं होता...बस प्रयास होना चाहिए कि हम दानव न बनें...
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
भाषा वही जो लोगों के बीच संवाद करा दे !
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ReplyDeleteजरूरी ====== अरबी शब्द...आवश्यक
ReplyDeleteहद ======== अरबी शब्द...आवश्यकता
बाकी ====== अरबी शब्द...शेष
ब्लोगिंग ==== अंग्रेजी शब्द...आप की लिए ?
खुद ======= पारसी शब्द...स्वतः
mera prayaas safal raha ki kam se kam aap ne in sabdon ki aor dhyaan diya, shesh log ka dhyaan akarsit karne maen main asfal raha.
(in sabdon ko maine jaante hue dala tha)
तेज भाई,
ReplyDeleteमेरे "ब्लॉग" (इसे मैं वृत्तपत्र भी कहता हूं) पर आने के लिए आपका धन्यवाद.
ध्यातव्य:-
"हद" = "सीमा" (आवश्यकता नहीं)
"जिन्दा" (ये भी विदेशज है स्रोत नहीं मालूम, शायद उर्दू या फारसी होगा) = "जीवित"
"खुद" = "स्वयं" (स्वतः नहीं)
Dhanywaad Diwakar Ji, aap ka bhi dhwaan akarsit hua. baki awasekat line ki awasekta hai...
ReplyDeleteइंटरनेट पर विचरण करते हुए आपके ब्लाग पर आगमन हुआ.आपके विचारों से अवगत हुआ.भाषा सरोवर की तरह स्थायी नहीं है वरन सरिता की तरह सतत प्रवाहशील है. हिंदी का जन्म कैसे हुआ ? संस्कृत स्वयं किस भाषा से परिवर्तित हुई है ? भाषा से संस्कृत,संस्कृत से हिंदी तक की यात्रा बहुत लंबी है.सच तो यह है कि जनसामान्य ही शब्दों की टकसाल और भाषा के परिवर्तनकार होते हैं.भाषा को कार्यालय में बैठकर प्रचारित नहीं किया जा सकता.आखिर महावीर स्वामी एवं गौतम बुदध ने संस्कृत में अपने विचार क्यों व्यक्त नहीं किए ? जो भाषा परिवर्तन स्वीकार नहीं कर सकती वह मृत हो जाती है . अनेक भाषाओं के शब्दों को समाहित करने से हिंदी संपन्न हो रहीं न कि विकृत.एक हजार साल पहले कि हिंदी और आज की हिंदी में अंतर है निश्चय ही एक हजार साल बाद नए रूप में होगी.गोमुख से निकलने वाली गंगा वहीं रह जाए तो क्या वह जनकल्याण कर पाएगी ? यशस्वी एवं सार्थक ब्लाग जीवन के लिए शुभकामनाएं स्वीकारें
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