कुछ पूराने वृछों से हवा बह आई है
अकेले पड़े शमशान के कब्र से,
आजादी की सुगंध संग लेकर आई है
हवा कुछ कहने आई है ।।
जो भूल गये हैं कीमत आजादी की,
उनको लम्बी नींद से जगाने आई है
पूराने पड़ चुके सोये जंगी हथियारों में,
फिर से आजादी का जोश जगाने आई है
हवा कुछ कहने आई है ।।
काटा था सर फिरंगी का जिसने,
उस जंगे-तलवार का दर्द गिनाने आई है
कमजोर बैठे कबूतरों को उड़ाने,
खूंखार आजादी के बाज जगाने आई है
हवा कुछ कहने आई है ।।
कब्र में पड़े शेरों के सपनों का भारत,
आज हमारे हवाले करने आई है
खाली पड़े बंजर मैदान से,
सूखे वृछ उखाड़ नये लगाने आई है
हवा कुछ कहने आई है।।
तेज प्रताप सिंह `तेज`
Mubarak,ho ki,aaj kisee ko watan kee yaad aayi hai!
ReplyDeleteBehad sundar alfaaz!
वाह...बहुत बढ़िया....हवा की बात सुन लें सब....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया कविता, आप का धन्यवाद
ReplyDeleteवाह! बेहतरीन भाव और उम्दा प्रवाह!! आनन्द आया.
ReplyDeleteएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
काफी कुछ बोल गयी ये हवा
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना!
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