Thursday, May 6, 2010

बाला...नये रूप में.......`तेज`

वैसे हाला और मधुशाला पर बहुत कुछ लिखा गाया है पर मेरी कोशिश आज यहाँ मधुशाला को दूसरे रूप में जिन्दा करना है.
"बाला" जो की यहाँ "मन" के रूप में होगी, "मधुशाला" "देवाला" और "हाला" "माला" के रूप में. मैंने "बाला" पर जादा जोर दिया है, की वह क्यों देवाला जाती है.

सुख संचित कर हंसती-खिलखिलाती,
जीवन के रंग को जीती-सहलाती,
दुःख में पाँव पसार सोती बाला,
मिलती उसे जब देवाला की माला।।1।

अँधेरी तरंगो के भीगे नीले नभ में,
भंवर की सिमटती लम्बी गहराई में,
जीवन की अटखेलियाँ करती बाला,
आती जब वह भुलाने दुःख, देवाला।।2।

सपनों की गहराई में दिन-रात खोई,
हाथों में माला लिए सुख की, रातों रोई, 
इससे अच्छा नहीं कोई शिवाला, कहती बाला 
जहाँ पराये लगते भाई, आती जब देवाला।।3।

दूनिया के दर्द से जब थक जाती,
भीड़ के थपेड़ों में जब खो जाती,
रिश्तों में जब कभी अकेली होती बाला,
अपनों से तब मिलने आती वह देवाला।।4।

कुछ करने की भड़ास में जब रह जाती,
रिशवत के चंगुल में जब फंस जाती,
बड़े सपनों के बोझ में जब दब जाती बाला,
पूरा करने तब अरमान सारे आती वह देवाला।।5।

विधवा की जवानी, गद्दार की देश भक्ति से,
राजनीति के गंदे रंग, आतंकवाद की शक्ति से,
जब खिन्न हो जाती चंचल अलबेली बाला,
आती नई सुबह के इंतज़ार में लेने माला, देवाला।।6।

महबूब की मीठी सुनहरी बीती याद में,
सुन्दर बालाओं और मिलन की आश में, 
भरे प्याले की कलकल गहराई में, बाला
जीवन खोजने आती, लेने माला, देवाला।।7।

नेता-भ्रस्टाचार के भरोसे छोड़ देस-ईमान,
मंदिर-मस्जिद में छोड़ भगवान-अल्ला,
रामायण-कुरान में छोड़ राम-रहीम, बाला 
आती क्यों करने अपमान, पहन माला, देवाला।।8। 
Conti...
तेज प्रताप सिंह `तेज`

8 comments:

  1. विधवा की जवानी, गद्दार की देश भक्ति से,
    राजनीति के गंदे रंग, आतंकवाद की शक्ति से,
    जब खिन्न हो जाती चंचल अलबेली बाला,
    आती तब वह लेने अंगूर की माला, देवाला।

    par ye koi hal to na hua...agar hua devala me baithega to desh kya hinjre chalayenge...

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  2. दूनिया के दर्द से जब थक जाती,
    भीड़ के थपेड़ों में जब खो जाती,
    रिश्तों में जब कभी अकेली होती बाला,
    अपनों से तब मिलने आती वह देवाला।।4।
    Kahin to use sukun milta hai...warna ham to sukun ka arth bhool chale hain,to use payenge kaise?

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  3. sahi kaha dileep...par aaj ke dewala ki sachiye yahi hai...kisi ko kisi ki parwah nahin.

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  4. sundar kavita likhi Tej dear..
    Sharad Kokas bhaia, Apoorv, Darshan, Gautam Rajrishi, Kishor Chaudhry ko padhte raha karo..

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  5. Tej ji aap samajh nahi paaye....ye bharat hai jo apni swatantrata ke 62 saal poore kar chuka hai...wah apni kahani suna raha hai....

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  6. बहुत बढ़िया ....ये सुन्दर माला चल रही है

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