Tuesday, May 4, 2010

देवाला की माला....

(2)
अँधेरी तरंगो के नीले नभ में
भंवर की सिमटती गहराई में 
सुलगती आग की लपट में
अटखेलियाँ करती बाला....
विधवा की जवानी 
गद्दार की देश भक्ति 
राजनीति के गंदे रंग
और आतंकवाद की शक्ति 
से खिन्न होकर आती बाला 
डालने देवाला के माला....
महबूब की मीठी याद में
मिलन की सुन्दर आश में 
थिरकती सुन्दर बालाओं में 
जीवन खोजने आती बाला 
लेने देवाला की माला....
Conti...
तेज प्रताप सिंह `तेज`

5 comments:

  1. अँधेरी तरंगो के नीले नभ में
    भंवर की सिमटती गहराई में
    सुलगती आग की लपट में
    अटखेलियाँ करती बाला....
    Badi anoothi rachana hai..

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  2. aap ka dhanaywaad
    puri baat pakdne ke liye aap ko mere pichle post par jana hoga.

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  3. waah ye naveen madhushala bahut pasand aa rahi hai lajawaab...

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  4. वाह जी बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
    धन्यवाद

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  5. आपने तो शब्दों की माला में सच्चे मोती पिरो दिये!

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