ये पेपर.. ये जर्नल.. ये रिसर्च की दुनिया ये बालों की दुश्मन कीताबों की दुनिया ये पब्लीकेशन की भूखी लोगों की दुनिया ये दुनिया अगर मील भी जाये तो क्या है...!! हर एक स्कॉलर घायल.. है रूह उसकी प्यासी.. नीगाहो में उलझन दिलों में उदासी ये लेब है या आलम बद-हबासी ये अनालिसीस अगर हो भी जाये तो क्या है..!! यहाँ बस चपरासी है हर स्कॉलर की हस्ती.. ये बस्ती है बस बूड़े प्रोफेसर्स की बस्ती.. स्कॉलर्स की जवानी है उनके बुडापे से सस्ती.. ये एक्सपेरिमेंट अगर हो भी जाये तो क्या है..!! लड़का भटकता है बेकार बन कर... लड़की के पेपर छपते है एहसान बन कर... रिसर्च यहाँ होती है व्यापार बन कर... ये रिसर्च अगर हो भी जाये तो क्या है...!! ये दुनिया जहाँ दिमाग कुछ नहीं है पेपर के आगे दोस्ती कुछ नहीं है.. वफ़ा कुछ नहीं प्यार कुछ नहीं है.. ये पेपर अगर छप भी जाये तो क्या है..!! जला दो इसे फूंक डालो ये जर्नल मेरे सामने से हटा लो ये थीसिस तुम्हारी है तुम ही संभालो ये लैब ये थीसिस अगर मिल भी जाये तो क्या है..!! |
(एक मित्र ने ईमेल से भेजा)
बहुत सुन्दर रचना ही जी!
ReplyDeleteराम-राम!
हा हा!! बहुत मस्त!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteतुम्हारी है तुम ही संभालो ये लैब
ये थीसिस अगर मिल भी जाये तो क्या है..!!
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
Ha,ha,ha...bahut mazedar parody!
ReplyDelete