Monday, April 19, 2010

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक और उड़न तश्तरी के अनुरोध पर यात्रा जारी है ....

चलिए यात्रा को और आगे बढ़ाते हैं ...फिर से थोडा गुदगुदाते हैं....
(7)
गर्मी ने लोगों को इसकदर परेशान कर रखा था की लोग या तो ऊपर बंद पड़े पंखे को देखते या फिर पसीना पोछते...
इतने में डिब्बे में प्रवेश हुआ एक दुबले पतले आदमी का जो हाथ का पंखा बेंच रहा था.
लिजीये पंखा जो देता है हवा बिना करंट का....सिर्फ ५ बचें है, जल्दी करिए 
मोटे ने उस आदमी को ऊपर से नीचे तक देखा..फिर बोला तुम भी दूसरों की तरहं ठग तो नहीं हो..?
ना बाबू ..बिलकुल टिकाऊ माल बेचता हूँ मैं..
चल तो फिर एक पंखा निकाल..कितने का है ?
बाबू २० रुपये का है 
क्या बात करता है, इतना महंगा..हमारे यहाँ तो २० में दो मिल जाते   
ठीक है बाबू तो आप वहीँ से ले लेना....
अरे रुक ला एक दे...मोटे ने २० का नोट थमाया 
लेकिन बाबू एक बिनती है 
उ का ...जब तक हम ना कही पंखा ना चलाना, मैं अभी ५ मिनट में आता हूँ तब बताऊंगा पंखा कैसे चलाना है.
क्यों ईमां कोई खाश बात है का...हाँ है ना, इतना कहके वो चला गाया 
मोटे से रहा ना गाया और उसने पंखा चला दिया..इधर चलाने की देर थी की पंखा दो टुकड़ों में बट गाया 
ये देखो ससुर २० रुपये का पंखा २० मिनट भी ना चला..मोटे चिल्ला पड़ा 
सब उसकी तरफ देखने लगे, इतने में पंखे वाला आदमी भी आ गाया 
का हुआ बाबू!!! पंखा दो हम चलाना बताते हैं
ससुर तुम बोले रहो की तुम ठग ना हो फिर ये पंखा...
हाँ बाबू पर आप पंखा चला काहे दिहो 
ससुर ईमां कोई विद्या लागत है का जोन हम ना चला सकित रहा..आओ भाई तुम्ही बताओ कैसे चलावत हैं 
पंखे वाले ने एक हाथ में पंखा पकड़ा फिर बोला...
ई पंखा हाथ से सीधे पकड़ो और उसके सामने मुहं को घुमाओं..दायें-बायें 
हाय रे दादा..ई तो कमाल का पंखा बेंच रहा है...तुम तो सबके बाप निकले 
बाबू देखो ई आप की गलती रही हमरा नाहीं..
अच्छा अब तुम भी निकल लो यहाँ से, लगता है सारे अजूबे इसी ट्रेन में आ गए हैं...पूराने बोला 
ससुर आज का दिन ही खराब है, कुछ भी ठीक नहीं हो रहा है....मोटे दुःख भरी आवाज में बोला
(8)  
अम्मा तोहरे बिटिया की शादी का का हुआ 
हाँ..पूराने मिला है एक लड़का सोच रहीं हूँ अगले साल शादी कर दूँ बिटिया की...
लड़का करता क्या है..कुछ पता है 
हाँ उन लोगों ने बोला है की लड़का टिम्बर मर्चेंट की दूकान चलाता है
तब तो बढ़िया कमाता होगा..पर दूकान में क्या है, कुर्सी, अलमारी, पलंग या सब 
नाहीं पूराने ई सब ना है 
तो क्या है कच्ची लकड़ी बेचता है क्या.....
ना ई सब भी ना बा 
तो क्या ठेका लेता है लकड़ी का..कुछ तो पता होगा ना 
ना ई सब भी नाहीं करत है 
पूराने थोडा दूसरे आवाज में बोला, तो क्या हरे पेंड लगवाता है क्या....
नाहीं ये भी नहीं...अरे तो करता क्या है 
वो...वो बस स्टैंड पर दातून बेचता है 
ससुर..के ये बात बोले मं इतनी देर....
अब का करी पूराने इज्ज़त देखे का पडत है ना 
अरे तो ई पहले देखना था अब क्या फ़ायदा ....
अम्मा चुप हो गयी और इधर-उधर देखने लगी 
Conti...
तेज प्रताप सिंह

7 comments:

  1. sir ji wo waqt yaad aa gaya...jab log pen mang kar pankha chalaya karte the...sote sote kisi ki chappal kisi ke munh girti thi...aur agar general me ho to baap re baap....

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  2. हा हा..पंखे कथा से भी मजेदार टिम्बर मर्चेन्ट लगा..मजा आ गया ..दातुन वाला टिम्बर मर्चेन्ट पहली बार जाना!! मस्त!

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  3. bahut maja aaya aap ke safar main

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  4. पंखे की बात तो पुरानी थी लेकिन दतुन वाली नयी थी, अच्‍छी लगी।

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  5. यात्रा बहुत ही मनोहारी चल रही है!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    आज की चर्चा में यह चर्चित पोस्ट है जी!

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