Friday, March 5, 2010

वेदना (जिंदगी-2).......कहानी संग्रह

"अगर हमारी थोड़ी कोशिस से किसी के सूने जीवन मैं बहार आ जाये तो हमें वो थोड़ी कोशिस जरूर करनी चहिये"
भगवान इस संसार मैं सबको एक जैसा ही भेजते है पर समय और परिस्थितयां उसकों और लोगों से अलग कर देती हैं" ...
यहाँ तक की वह अपना सही वजूद भी खो बैड़ता है.
चलिए अब मैं आप को वहां ले चलते हैं जहाँ मैंने अपनी भावनाओं और दिल की पीड़ा को उलझते हुए देखा है.........
क्या यार तुम तो मेरे रूम का रास्ता ही भूल गए हो....
अरे तेज ...चलो अच्छा हुआ तुम आ गए, और सुना क्या हाल है ....
मैं क्या सुनाऊँ....तू ही आज कल नजर नहीं आता है,
कोई बात है क्या ? आज कल तुम थोडा उदास रहते हो....कुछ हुआ है क्या..
नहीं यार थोडा फॅमिली प्रोब्लम है
फिर भी ..."तुम तो जानते ही हो की पिता जी के न रहने से हमें कितनी मुस्किलों का सामना करना पड़ रहा है"
मैं तुम्हारी प्रोब्लम्स को समझ सकता हूँ पर ऐसे अकेले-अकेले रहने से तो कोई काम नहीं हो सकता है
बोलो मैं क्या कर सकता हूँ तुम्हारे लिए ......
कोई बात नहीं यार जब जरुरत पड़ेगी तो बोलूँगा ..
हाँ पर बोल देना, कोई परेशानी वाली बात नहीं है,
इतना कहने के बाद मैंने रोहित की दी हुई चाय की आखरी चुस्की ली और चलने के लिए इजाजत मांगी ...
दुसरे दिन.....सुबह-सुबह मेरे फ़ोन की घंटी बजी, मैंने मोबाइल उठाया,
रोहित कालिंग...
हाँ!!सुबह-सुबह...
अरे यार तुम घर कब जा रहे हो...
अगले महीने..क्यों क्या हुआ?
कुछ पैसे ला सकते हो मेरे घर से,
हाँ क्यों नहीं..
२ हजार, मैंने माँ से बोले दिया है; वो तुम्हे दे देंगी..
ओके!! यार मैं ले आऊंगा लेकिन अभी जरूरत हो तो बोलो...
नहीं अभी तो मेरे पास हैं
चलो ठीक है
बाय-बाय
"रोहित की आवाज कुछ भारी थी ऐसा लग रहा था जैसे वो मुझसे कुछ छिपा रहा हो ...
लकिन अब किसी के मन की बात तो समझी नहीं जा सकती "..
यह सोचते सोचते मैं फिर से सो गया....अब इतवार को तो कोई उठने की जल्दी नहीं होती है ..
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अरे जल्दी करो नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी..
हाँ आ रहा हूँ २ मिनट
हमेशा की तरह इस बार भी मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ ही घर जा रहा था ....
बातों-बातों मैं समय का कुछ पता नहीं चला, ऐसा लगा जैसे हम ट्रेन से उड़ कर घर पहुँच गए हों.
घर पहुचने पर हमें उसी तरह की ख़ुशी मिलती है जैसे की किसी फिल्म निर्माता की पहली फिल्म हिट होने पर....
अगले दिन में रोहित के घर गया
घंटी बजाई .....दरवाजा खुला तो सामने ४० साल का एक आदमी खड़ा था.
मैंने उसको अपने यहाँ आने का कारण बताया...
उसने मुझे बाहर रुकने के लिए बोला...?
"अगले पल मेरे हाथ में २००० रूपये थे. शायद मेरे आने के बारे में उसे सब कुछ पता था."
वापस आने पर मैं सबसे पहले में रोहित के घर गया 
रोहित तुमने मुझे उस बार भी कुछ नहीं बताया....
अब यार कुछ खास बात होती तो मैं जरूर बताता
ओके! यार अब मैं चलता हूँ
थैंक्स यार घर से पैसे लाने के लिए
नो प्रोब्लम, कोई और काम हो तो बोल देना
इतना कहकर मैं चल दिया. लेकिन अभी भी मुझे ऐसा लग रहा था की रोहित कुछ छिपा रहा है.
मैं घर पहुंचा ही था की रोहित का फिर से फ़ोन आया......
हेल्लो! अब क्या हुआ,
कुछ नहीं, मैं घर जा रहा हूँ,
क्या!!! अचानक तुझे ये क्या हो गया.....
खैर अब जा ही रहे हो तो ठीक है पर आने के बाद फ़ोन जरूर कर लेना.
ओके, मैं वापस आऊंगा तो फ़ोन करूँगा.
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आज पूरे ५ दिन हो गए रोहित का कोई फ़ोन नहीं आया और कोई दूसरा नंबर भी मेरे पास नहीं है.
मुझसे रहा नहीं गया, मैं उसके रूम पर पहुँच गया.
बगल वालों से पूछने के बाद जो मुझे पता चला उससे तो मेरे होस ही उड़ गए
लेकिन ये सब कैसे हो गया ...
मुझे भी पता नहीं, पोलिस वाले आये थे उन्हीं से पता चला.
कह रहे थे की किसी आदमीं का उसने खून कर दिया है.
किसका?????
कोई था उसके घर में, शायद उसकी माँ ने दूसरी सादी की थी.
अब मुझे सारी बात धीरे-धीरे समझ में आ रही थी.....की रोहित क्या छिपा रहा था!!
थोड़ी देर मैंने उससे बात की फिर वापस चला आया.
पर मन ही मन में, मैं ये सोचता रहा की आखिर रोहित ने.....?
क्या बात हो सकती है....
"खैर जिंदगी तो चलती ही रहती है
लोग मिलते हैं हवा की तरहं
और फिर उड़ जाते हैं धूल की तरहं....
हमें आगे चलना है, ठीक उसी तरहं जैसे हर सावन में बुलबुल अपना नया घोसला बनाती है."
चलो मैं अब आप से यही कह सकता हूँ की इंतज़ार करिए अगली कड़ी का.......

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